Home क्रिकेट मेरी जान। बिहार क्रिकेट:-जाने विजय हज़ारे में नाबाद 156* रन बनाने बाले शाहरुख के बारे में, स्ट्रगल कहानी।

बिहार क्रिकेट:-जाने विजय हज़ारे में नाबाद 156* रन बनाने बाले शाहरुख के बारे में, स्ट्रगल कहानी।

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भागलपुर।। जानते है आज भागलपुर से पिछले सीजन में विजय हज़ारे ट्रॉफी में बिहार टीम की ओर से 156* नाबाद बनाने बाले शारुख के बारे में इनका नाम मो.रहमतुल्लाह है यह भागलपुर जिला से आते है पिछले सीजन के एक मात्र ऐसे खिलाड़ी जिन्हें भागलपुर जिला से बिहार टीम में जगह मिला और रणजी ट्रॉफी ,विजय हज़ारे ट्रॉफी खेलने का भी मौका मिला।

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सवाल:- क्रिकेट कहा से सीखे कैसे क्रिकेट शुरू किया अपने अपने लाइफ में कितना स्ट्रगल करना पड़ा इस मुकाम के लिए:- शुरुआती में मेरे फैमली बैकग्राउंड क्रिकेटर का रहा मेरे भैया जी भी क्रिकेटर रहे, तो क्रिकेटर बनना मेरे लिए ऐसा ही रहा जैसे कोई डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बनता है,
क्रिकेट तो मैंने खेलना शुरू किया और जब 14-15 साल के हुई तो बिहार से मान्यता छीन गया था फिर भी मैंने ग्रैजुएशन तक खेला था क्रिकेट मैंने , इसके बाद घर की ज़िमेबारी उठाना उसके बाद कही दूसरे राज्य में जाना बहुत बड़ी लग रही थी फिर भी मैंने सौखिया खेल खेलते रहा अपने लाइफ में क्योकि क्रिकेट से बहुत जुड़ाव था मेरा। जब 18 साल बाद मान्यता मिला तो उस समय उम्र मेरी 30 या 32 हो गयी जब मान्यता मिला तो लगा क्रिकेट तो मेरी जान थी तो एक बार ज़माना चाइये इसलिए आज हम इस मुक़ाबम तक पहुचे क्योकि अच्छा परफॉर्मेंस रहा मेरा ।

सवाल:-18 साल बाद क्रिकेट लौटने में आपको लगा कि आप खेल सकते है रणजी,विजय हजारे ट्रॉफी

शारुख:- अगर मैं रणजी के बारे सोचता तो शायद नही खेल पाता ये हमे वह खेलने के लिए एक-एक स्टेप बढ़ना चाहिए,हर दिन कुछ सीखना चाहिए,पिछले साल मैने हेमन ट्रॉफी खेला इसमें विकाश बासुकीनाथ का बहुत बड़ा योगदान रहा उन्होंने मुझे हेमन खेलने के लिए बोला और क्रिकेट खेलने के लिए मोटिवेट किया । जहाँ तक मेरी बात है तो मैं मानता हूं कि क्रिकेट में आज भी कोई बदलाव नही है क्रिकेट तो आज भी ओहि है जिस समय मैं क्रिकेट खेला करता था उस समय की खिलाड़ी बदल गए है पर क्रिकेट तो ओहि है इसलिए मुझे खेलने में कोई परेशानी नही हुई।

156* नाबाद पारी के बारे में क्या सोचते है

156 रन के पारी के पहले मुझे जो भी मौका मिला किसी मे भी कोई खास परफॉर्मेंस नही रहा था फिर मुझे लगा कि मैंने अपने लाइफ में बहुत से अच्छे क्रिकेट खेले है बस उसी प्रकार मैने उस मैच में भी खेला और पहले 50 के बाद और भी बड़ी पारी खेलनी चाहिए और सबसे जरूरी रही कि खेलते बक्त दिमाग को संत रखकर बॉल पर फोकस किया।और 156* रन बनाए एक बात और है कि मैं हमेसा चाहता हु की मेरा मुड़ एक जैसा रहे क्योकि जब मैं 0 पर भी आउट हो जाता हूं तो भी और अगर 100 बनाया तो भी एक जैसा ही रहता हूं ज्यादा मैं उत्साहित नही होता हूं जब मैं क्रिकेट खेलता हु तो मैं नॉर्मल रहने की कोसिस में रहता है,और शतक भी बनाया तो मैं ज्यादा इंजॉय नही करता हुई।।

रणजी में सेलक्शन हुई वह भी अकेला ऐसा प्लयेर जो भागलपुर डिस्ट्रिक के थे :-
मैने कभी नही सोचा था कि मैं फिर से क्रिकेट में आ पाऊंगा क्योकि मेरी लाइफ किसी और पटरी पर थी जब मैंने हेमन खेला था तो उसमें अच्छा परफॉर्मेंस रहा था और खुसी की बात थी की मैं एक अकेला प्लेयर था जो भागलपुर के लिए रणजी और विजय हजारे ट्रॉफी खेल रहा था।बाइट बॉल क्रिकेट थोड़ा आसान हो जाता है पर रेड बॉल क्रिकेट जो मैंने सीखा था और उससे मैने अपने खेल को रेड बॉल क्रिकेट रणजी में रन बनाना बहुत अच्छा लग रहा था। मैं बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के बहुत बहुत धन्यवाद जिन्हीने हमे इतने मैच खेलने का मौका दिया

मुम्बई के खिलफ जब विजय हज़ारे ट्रॉफी का मैच था तो उसमें आपको कैसा फील हो रहा था उसमे हमारे इंडिया उपकप्तान रोहित शर्मा भी थे।

मैं उस दिन बहुत खुश था क्योंकि मैंने इससे पहले तो कभी भी नही रोहित जो इतने नजदीक से देखा था और कभी इतने बड़े खिलाड़ी के साथ खेला था लेकिन मुझे नरभस नही हुई क्योकि मैं खुस था कि मुझे खेलने का मौका मिला रहा है। जहाँ तक उस मैच का सबाल है तो मैं नर्भस नही था मुझे खुसी थी कि रोहित शर्मा को खेलते देख कर सीखने को मिलेगा।।

आप क्रिकेट कहा से सीखे कैसे क्रिकेट शुरू किया अपने अपने लाइफ में कितना स्ट्रगल करना पड़ा इस मुकाम के लिए:– शुरुआती में मेरे फैमली बैकग्राउंड क्रिकेटर का रहा मेरे भैया जी भी क्रिकेटर रहे, तो क्रिकेटर बनना मेरे लिए ऐसा ही रहा जैसे कोई डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बनता है,
क्रिकेट तो मैंने खेलना शुरू किया और जब 14-15 साल के हुई तो बिहार से मान्यता छीन गया था फिर भी मैंने ग्रैजुएशन तक खेला था क्रिकेट मैंने , इसके बाद घर की ज़िमेबारी उठाना उसके बाद कही दूसरे राज्य में जाना बहुत बड़ी लग रही थी फिर भी मैंने सौखिया खेल खेलते रहा अपने लाइफ में क्योकि क्रिकेट से बहुत जुड़ाव था मेरा। जब 18 साल बाद मान्यता मिला तो उस समय उम्र मेरी 30 या 32 हो गयी जब मान्यता मिला तो लगा क्रिकेट तो मेरी जान थी तो एक बार ज़माना चाइये इसलिए आज हम इस मुक़ाबम तक पहुचे क्योकि अच्छा परफॉर्मेंस रहा मेरा ।

मान्यता जब छीन गयी बिहार से तो आप अच्छे खिलाड़ी थे बाहर दूसरे राज्य से भी खेल सकते थे।

यह मेरे सोच पर था मुझे लगा था किसी और राज्य में स्ट्रगल करने से अच्छा है हम अपना नार्मल लाइफ जिये, हा मुझे जाना चाहिए था लेकिन हम नही गए थे।

क्या बिहार टीम में ओ दम है कि आगे बढ़ सके।

बिल्कुल दम है इस साल मान्यता मिला और हमारे राज्य के लड़कों ने बहुत अच्छा खेल दिखाया है और सबकुछ पहली बार था इसलिए अच्छा करते हुए भी ज्यादा आगे नही बढ़ पाए पर हम बहुत अच्छा खेले अब बिहार में सभी बच्चे जो क्रिकेटर बनना चाहते है वह मेहनत कर रहे है जो भी जिले के खिलाड़ी रणजी या विजय हज़ारे खेल के आये है तो उनसे बच्चों को लग रहा है और पता चल रहा है कि कैसे क्रिकेट खेलना है ।।

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