अंतर्राष्ट्रीय मैचवर्ल्डकप-2019

यहाँ के आदिवासी 129 साल से क्रिकेट खेल रहे,अम्पायर निर्णय नही दे तो लड़ाई कर निर्णय लेते है

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क्रिकेट वर्ल्ड कप-2019 के जरिए आईसीसी क्रिकेट को दुनिया के अलग-अलग देशों में, अनछुए कोनों में पहुंचाने की मुहिम शुरू कर चुका है। लेकिन एशिया का ये सर्वाधिक लोकप्रिय खेल कई ऐसे कोनों में अनोखे अंदाज में खेला जा रहा है, जिसके बारे में तो खुद आईसीसी को भी नहीं पता होगा।

वेस्टइंडीज के पापुआ न्यू गिनी के पास है- ट्रोब्रियांड आईलैंड ये आदिवासियों का आईलैंड हैं। जनसंख्या करीब एक हजार है। आईलैंड का फेवरेट खेल क्रिकेट है। करीब 129 साल से यहां के आदिवासी क्रिकेट खेलते और समझते आ रहे हैं। इन्हें देखेंगे तो बिल्कुल गली-कूचों में खेले जाने वाले गली क्रिकेट जैसा दिखेगा, लेकिन ये उससे कई मायनों में अलग है। इन आदिवासियों को तो ये भी नहीं पता कि वे जो खेल खेलते हैं, वो उनकी बिरादरी से बाहर भी दुनिया में कहीं खेला जाता है, वो भी इतने बड़े स्तर पर।

विवाद हुआ तो लड़कर अंतिम फैसला करते हैं
ट्रोब्रियांड आईलैंड में क्रिकेट सबसे पसंदीदा तो है, लेकिन नियम इनके अपने हैं। बांस-बल्ली से ये लोग अपने खेलने के लिए स्टंप और बैट बनाते हैं। गेंद का जुगाड़ आस-पास के गांव से ही कर लेते हैं। फिर अपने जुगाड़ वाले बैट को बेसबॉल वाले बैट की तरह पकड़कर इनका एक ही उद्देश्य होता है- गेंद को जितना तेज हो सके, उतना तेज मारो। एक बार में एक ही बल्लेबाज बैटिंग करता है। सिर्फ 11 खिलाड़ियों में खेल खेलना इन्हें बोरिंग लगता था, इसलिए जब एक बल्लेबाज खेलता है तो 30 लोग तक फील्डिंग करते हैं।

समुद्र किनारे खेलते हैं, जहां एक नारियल का काफी ऊंचा पेड़ भी है। ये पेड़ पार कराने पर 6 रन मिलते हैं। खेल खेलने के लिए गांव वालों की एक तय पोशाक है। लाल लंगोट लपेटते हैं और चेहरे पर लड़ाकों की तरह पेंट लगाते हैं। कई बार खेल में ही विवाद भी हो जाता है। सुलझाने का एक ही तरीका है- आपस में लड़ लो। जो जीता, मैच का विजेता वही।

1890 में कुछ अंग्रेज आकर इन आदिवासियों को क्रिकेट सिखा गए थे
ट्रोब्रियांड आईलैंड के आदिवासी 1890 के करीब से क्रिकेट जानते और खेलते आ रहे हैं। इस आईलैंड के पास ही अंग्रेज सैनिकों की एक बड़ी टुकड़ी तैनात रहा करती थी।

किसी इमरजेंसी की वजह से पूरी टुकड़ी को कुछ दिन के लिए देश वापस बुला लिया गया, लेकिन कुछ सैनिकों को अनुशासनहीनता की वजह से बाकियों की वापसी तक यहीं रुके रहने के लिए कहा गया। खाली समय में ये बचे हुए सैनिक घूमते-घूमते ट्रोब्रियांड गांव आ गए और आदिवासियों को क्रिकेट खेलना सिखा गए।

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