Home Bihar Cricket News, अब तो बीसीए सचिव के साये से भी डर रहे है बीसीए अध्यक्ष: मनोज कुमार(एमडीसीए)

अब तो बीसीए सचिव के साये से भी डर रहे है बीसीए अध्यक्ष: मनोज कुमार(एमडीसीए)

by Khelbihar.com
  • अब तो सचिव का साया भी डरा रहा है अध्यक्ष कोकथित बर्खास्तगी के बाद भी अपना रहे हैं तरह-तरह के हथकंडेयह मनमानी है या पकड़े जाने का भय:- मनोज कुमार

खेलबिहार न्यूज़

पटना 25 अगस्त: बिहार क्रिकेट संघ में सचिव संजय कुमार को बेदखल करने की घोषणा के बाद भी अध्यक्ष उसके साये से भी घबरा रहे हैं। ये बाते मुज़फ्फरपुर के सचिव व स्वतंत्र पत्रकार मनोज कुमार ने कही है।

मनोज कुमार ने कहा है कि ऐसे में यह प्रमाणित होता है कि अध्यक्ष कही न कही सचिव की शख्सियत से डरते हैं या उन्हें मालूम है कि उन्होंने जो एकतरफा  फरमान जारी कर संयुक्त सचिव कुमार अरविंद को अपना वारिस बना रखा है वह न तो संवैधानिक स्तर पर बीसीए के अनुकूल है और ना ही लोकतांत्रिक प्रणाली में ऐसे हास्यास्पद फैसले लिए जा सकते हैं ।

जहां तक बीसीए के अध्यक्ष राकेश कुमार तिवारी और उनके इर्द-गिर्द मंडराने वाले तथाकथित चाटूकारो को शायद यह नहीं मालूम है कि लोकतांत्रिक प्रणाली से निर्वाचित पदाधिकारी को आनन-फानन में निलंबित अथवा बर्खास्त करने का एकल अधिकार किसी को नहीं है। जहां तक सचिव संजय कुमार के खिलाफ आरोप का सवाल है तो अब तक कथित वित्तीय अनियमितता का आरोप  साबित नहीं हो सका है और कनफ्लिक्ट्स आफ इंटरेस्ट मामले में एथिक ऑफिसर जैन ने अपने फैसले में सचिव को आरोप मुक्त कर दिया है ।

मजे की बात यह है कि एक ओर बीसीए अध्यक्ष अपनी कथित मनमानी के दायरे को विस्तार देते हुए पहले सचिव को एक अमान्य एजीएम में निलंबित किया। जबकि वहां उनके खिलाफ कोई मामला तक नहीं उठाया गया था। कालांतर में उन्हें उसी आरोप के दायरे में अध्यक्ष द्वारा विशेष आम सभा में बर्खास्त किए जाने का फरमान भी सुना डाला ।जबकि तब उनके खिलाफ लोकपाल के न्यायालय में मामला विचाराधीन था।  जिस तिथि 26 जून 20 को सचिव को बर्खास्त किए जाने का फरमान सामने आया उसी महीने में 30 जून को सचिव को लोकपाल के न्यायालय में पक्ष रखने का तिथि निर्धारण था ।

अब या तो अध्यक्ष लोकपाल की महत्ता नहीं स्वीकारते या फिर पटना हाई कोर्ट के आदेश ने उन्हें डिगा दिया था। यहां अध्यक्ष की मनमानी का बड़ा प्रमाण यह भी है कि बीसीए के मानद सचिव का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है जबकि उन्हें छह साल के लिए बर्खास्त किया गया है। अब सवाल यह उठता है कि जो व्यक्ति बीसीए के पद पर तीन वर्ष के बाद रहेगा कि नहीं रहेगा इसका निर्धारण ही नहीं है बावजूद इसके उसकी बर्खास्तगी अगले तीन वर्षों के लिए भी होना कितना वैध है ? इतना ही नहीं सचिव के बर्खास्तगी का फरमान जारी करने के बाद भी अध्यक्ष एथिक आफिसर के द्वारा यह आदेश निर्गत करा रहे कि संजय कुमार को बीसीए सचिव पद से बर्खास्त कर चुका है ऐसे में वह  क्रिकेट से जुड़ी कोई भी गतिविधि नहीं कर सकते हैं ।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि अध्यक्ष बीसीए में या तो अपने अधिकार का दायरा नहीं समझ पा रहे हैं। उन्हे बीसीए के संविधान  की समझ नहीं है। उन्हें क्रिकेट की समझ भी नहीं है। या उन्हें लगता है कि वह बिहार क्रिकेट संघ के वैसे तानाशाह हैं जिनके खिलाफ कोई परिंदा पर नहीं मार सकता ! या फिर उन्हें उस लाश से भी भय हो रहा है जिसकी हत्या के बाद भूत बनने का डर मन में खौफ़ बनकर समा गया है ।अगर ऐसा नहीं होता तो अध्यक्ष जिस सचिव को बर्खास्त कर चुके हो उसके खिलाफ बार-बार न्यायिक प्रक्रिया से गुजरना , इश्तिहार लगाना निसंदेह उनके अंदरुनी भय को उजागर कर रहा है।

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