वास्ता नहीं कहकर वित्तीय मामलों से पल्ला नहीं झाड़ सकते बीसीए अध्यक्ष-मनोज कुमार(एमडीसीए सचिव)

  • लोकपाल की नियुक्ति वेतनमान का निर्धारण और भुगतान तक उन्होने ली थी जिम्मेदारी जीएम क्रिकेट की नियुक्ति और वेतनमान भी सवालों के घेरे में!- मनोज कुमार

खेलबिहार न्यूज़

मुज़फ्फरपुर 7 जून: बिहार क्रिकेट संघ के अध्यक्ष ने निगरानी विभाग के कसते शिकंजे के बीच बीसीए के वित्तीय मामलों से कोई वास्ता नहीं कहकर भले ही अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की हो लेकिन सवाल उठता है कि क्या उनके कह देने भर से जबाबदेही खत्म हो जाती है ?ये बाते खेलबिहार से प्रेस विज्ञप्ति जारी कर मुज़फ्फरपुर जिला क्रिकेट संघ सचिव मनोज कुमार ने कही है।।


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बीसीए में दिनों दिन बढ़ रहे विवाद और आरोप प्रत्यारोप के बीच शनिवार को बड़ा मामला सामने आया जब कांग्रेस नेता ने अध्यक्ष राकेश तिवारी पर बीसीए में मनमानी और अनियमिता का आरोप लगाते हुए निगरानी विभाग से जाँच की मांग उठायी है। आरोप के आलोक में बीसीए अध्यक्ष ने दो टूक जबाब दिया कि बीसीए के वित्तीय मामलों में उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है! अब सवाल यह उठता है कि क्या बगैर जिम्मेदारी के ही उन्होने न सिर्फ बीसीए में लोकपाल की नियुक्ति कर डाली, नियुक्ति पत्र सौंप डाला, उनके मनमाना वेतनमान निर्धारित कर डाला बल्कि तमाम विरोध के बावजूद लोकपाल को एकमुश्त भुगतान ( नौ लाख रूपया ) भी कराया।


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सूत्र बताते हैं कि पिछले 17 मार्च को अध्यक्ष राकेश तिवारी ने कोषाध्यक्ष आशुतोष नंदन सिंह पर लोकपाल के भुगतान को लेकर दबाव बनाया था। भारी दबाब में बनाये गये चेक को एकसमय कोषाध्यक्ष ने हाई कोर्ट के आदेश का हवाला देकर, जिसमें लोकपाल की नियुक्ति पर सवाल खड़ा कर कार्य पर रोक लगाई गई थी, बैंक से चेक वापस ले लिया था। बावजूद इसके अगले दिन अध्यक्ष राकेश तिवारी ने कोषाध्यक्ष को भुगतान करने संबंधी अनुमोदन पत्र देकर 18 मार्च 2020 को लोकपाल का वेतन भुगतान कराया।


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जबकि इसी वित्तीय वर्ष में संपन्न वार्षिक आमसभा में लोकपाल के वेतन मद में सवा लाख प्रति माह की स्वीकृति सदस्यों ने दी थी। यहाँ सवाल उठता है कि अध्यक्ष ने संविधान और एजीएम के स्वीकृत प्रश्ताव की अनदेखी तथा लोकपाल के वेतनमान का मनमाना निर्धारण कैसे किया?
इसी कड़ी में दूसरा मामला सामने आया जब अध्यक्ष राकेश तिवारी ने बिहार क्रिकेट संघ में जीएम क्रिकेट की नियुक्ति कर डाली जिसका वेतनमान भी डेढ़ लाख प्रति माह बताया जा रहा है ? अगर यह सही है तो गौरतलब है कि जीएम क्रिकेट सीईओ बीसीए के अधीन काम करेंगे और सीईओ का वेतनमान प्रति माह 60 हजार रुपये निर्धारित है।


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इसके अलावा बीसीए अध्यक्ष ने संघ के नाम पर अलग कार्यालय भी बनवाने का काम किया जिसके मद में लगभग 90 हजार रुपये प्रति माह भाड़ा का निर्धारण किया गया है। यहाँ गौरतलब है कि बीसीए का पूर्व से अपना कार्यालय 18 हजार प्रति माह पर सुचारु है। मनमानी की बात यही खत्म नहीं होती है बीसीए अध्यक्ष ने कार्यालय के साथ साथ एक अतिथि भवन भी भाड़े पर लिया है जिसका भाड़ा प्रति माह 25 हजार रुपये निर्धारित है।


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अब सवाल उठता है कि जब बीसीए अध्यक्ष का वित्तीय मामलों से कोई वास्ता नहीं बनता तब ऐसे मामलों में उनकी सीधा संलिप्तता क्यों और कैसे है ? किस हैसियत से 31 जनवरी के कथित एजीएम में कोषाध्यक्ष आशुतोष नंदन सिंह की अनुपस्थिति में अध्यक्ष ने सचिव संजय कुमार पर वित्तीय अनियमिता का आरोप लगाते हुए निलंबन और कार्यमुक्त का फ़रमान सुनाया हीरो नहीं तत्काल ही संयुक्त सचिव को सचिव का कार्यभार भी सौंप दिया। साथ ही आनन फानन में बैंक में हस्ताक्षरी के रूप में संयुक्त सचिव को नामित कर डाला ?


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किस हैसियत से उन्होने कोषाध्यक्ष पर भुगतान हेतु दबाव बनाया और अंततः अनुमोदन कर भुगतान करने के लिए विवश किया ?सवाल यह भी है कि बीसीए में किसी भी वित्तीय मामलों में अनियमिता को लेकर अध्यक्ष ने कभी सदस्यों को आगाह अथवा कारण पृच्छा किया है कि नहीं ?
जहाँ तक बीसीए के संविधान का सवाल है इसके वित्तीय मामलों का अंकेक्षण तब ही संभव है जब सीओएम के तीन विशिष्ट पदाधिकारी अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष का संयुक्त हस्ताक्षर हो! ऐसी स्थिति में बीसीए अध्यक्ष वित्तीय मामलों में ना कहकर पल्ला झाड़ लें उचित प्रतीत नहीं होता है।

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