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पटना 7 अगस्त: जब किसी ने भी आईपीएल की चकाचौंध और ग्लैमर का सपना भी नहीं देखा था, भारत के गर्मी में खेले जाने वाले एक प्रांतीय क्रिकेट टूर्नामेंट ने देश के कुछ महान क्रिकेटरों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई थी, जिसमें टीम इंडिया के विश्व कप विजेता कप्तान महेंद्र सिंह धोनी शामिल हैं।
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लखनऊ में होने वाला वार्षिक शीश महल टूर्नामेंट 59 साल के बाद साल 2010 में समाप्त हो गया, जिसके ठीक बाद इंडियन प्रीमियर लीग ने दुनिया भर के प्रसिद्ध खिलाड़ियों को पैसा और उच्च श्रेणी की प्रतियोगिता के साथ लुभाना शुरू किया।
लेकिन अगले महीने में होने वाले आईपीएल में खेलने वाले खिलाड़ियों में से कई भी शीश महल के आभारी हैं। 39 साल के विकेटकीपर-बल्लेबाज धोनी ने 18 साल की उम्र में पहली बार शीश महल टूर्नामेंट में कदम रखा। पहले मैच में धोनी ने सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड के लिए अर्धशतकीय पारी खेली थी।
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जब शीश महल टूर्नामेंट अपने शीर्ष पर था तो टीम इंडिया के कई दिग्गज कप्तान- मंसूर अली खान पटौदी, कपिल और बिशन सिंह बेदी भी इसका हिस्सा हुआ करते थे। टूर्नामेंट की शुरुआत 1951 में लखनऊ के अस्कारी हसन ने की थी।
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क्रिकेट प्रशंसकों के परिवार से आने वाले हसन अपने समय में शानदार ऑलराउंडर थे। उन्होंने दो और तीन दिवसीय मैचों की शुरुआत की थी लेकिन जल्द ही ये टूर्नामेंट 50 ओवर के फॉर्मेट में बदल गया। वहीं 10 साल के बाद शीश महल टूर्नामेंट ने 20-20 फॉर्मेट को अपना लिया।
खिलाड़ी यूएई से भी इस टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए आते थे और उनका मकसद ट्रॉफी के साथ ईनाम राशि हासिल करना भी होता है। हालांकि इस टूर्नामेंट ने कई युवा खिलाड़ियों को राष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई है लेकिन पैसा खिलाड़ियों को इस टूर्नामेंट तक खींच लाने का मुख्य कारण था।
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एएफपी से बातचीत में 28 साल तक शीश महल खेल चुके उत्तर प्रदेश के खिलाड़ी अशोप बांबी ने कहा, “उस समय टेस्ट खिलाड़ियों को भी पैसे नहीं मिलते थे। क्लब अपने स्टार खिलाड़ियों के यात्रा करने और होटल में रुकने का भुगतान करते थे। बात केवल क्रिकेट खेलने की थी। ये अलग ही समय था।”
भारत के पूर्व दिग्गज स्पिनर बेदी ने अमृतसर की तरफ से पांच साल तक शीश महल टूर्नामेंट खेला था। उन्होंने कहा, “मैं उस समय प्रतिष्ठित क्रिकेटर नहीं था