- बीसीए का असली सीईओ कौन ? सुधीर या मनीष राज !
- बंद कमरे से कथित नियुक्ति पर उठ रहा सवाल!
- पहले सीईओ बदले कैसे? इस्तीफा दिया कि बर्खास्त किये गये !
खेलबिहार न्यूज़
मनोज कुमार की कलम से✍️
पटना 31 अक्टूबर: अजब है बीसीए ! इसकी गजब कहानी ? इस कड़ी में आज हम बिहार क्रिकेट संघ के सीईओ ( मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी) की बात करेंगे ! सर्वप्रथम यह तय करेंगे की बीसीए में सीईओ आखिर है कौन ? सुधीर झा या मनीष राज? या मौजूदा बीसीए दो सीईओ के साथ काम कर रहा है ।
यह असमंजस की स्थिति इसलिए है कि बीसीए के सीईओ सुधीर कुमार झा को नवनिर्वाचित कमेटी ने एक वर्ष का विस्तारित कार्यकाल दिया था। इसके मुताबिक श्री झा अभी बीसीए के सीईओ हैं । अगर उन्होंने अपना इस्तीफा नहीं दिया हो अथवा उन्हें उनके पद से बर्खास्त नहीं किया गया हो ? ऐसे में यह सवाल उठता है कि बीसीए के मौजूदा सीईओ मनीष राज की नियुक्ति का आधार क्या है ?
अगर पुराने सीईओ अभी भी अपने पद पर बने हैं तो यह नियुक्ति पूर्णत: जालसाजी है अथवा श्री झा ने अगर इस्तीफा दे रखा है तो उनकी जगह नियुक्ति के लिए बीसीए को पहले इस्तीफा पत्र सार्वजनिक करना चाहिए था। इसके पश्चात सीईओ पद पर नियुक्ति हेतु निविदा निकालने चाहिए थे। तत्पश्चात आवेदनों के आलोक में स्क्रीनिंग कर उक्त पद पर बहाली होनी चाहिए थी।
और तो और बीसीए अध्यक्ष की ओर से बनाये गये सर्च एंड स्क्रीनिग कमिटी ने भी इस संबंध में कोई गुप्त रिपोर्ट नहीं दिया था। वहीं बीसीए की ओर से नियुक्ति को लेकर निकाले गये विज्ञापन के आलोक में आये 42 आवेदनों में भी मनीष राज आवेदक नहीं थे।फिर उनकी नियुक्ति कैसे हो गयी? संभवत ऐसी प्रक्रियाओं के सार्वजनिक नहीं किए जाने से ही बीसीए में इस बात की चर्चा जोर शोर से है कि अध्यक्ष राकेश कुमार तिवारी के एकतरफा फैसले अथवा मनमानी की उपज हैं मनीष राज ।
बतौर सीईओ उनके द्वारा सी ओ एम सदस्यों को जो अभी हालिया पत्र लिखा गया है उसमें दर्शाया गया है कि बीसीसीआई द्वारा दुबई में आयोजित आईपीएल के फाइनल में बिहार क्रिकेट संघ की ओर से प्रतिनिधित्व के लिए संयुक्त सचिव कथित कार्यकारी सचिव कुमार अरविंद के पक्ष में सदस्य अपनी सहमति प्रदान करें । ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि जिस सीईओ को सी ओ एम की सहमति अथवा अनुमति से ही नियुक्ति मिलती है क्या वह उन पदाधिकारियों पर शासन चलाने को वैध है ? या उनसे आग्रह करना चाहिए था!
बहरहाल सीईओ मनीष राज के द्वारा पूर्व में भी कुछेक पत्र जारी किए गए हैं और तो और उन्हें बीसीए की ओर से जुलाई महीने में उनके पद के विरुद्ध भुगतान भी दिया गया है । ऐसे में यह सवाल लाजमी है कि बीसीए किन मुद्दों पर सुधीर झा की नियुक्ति के विस्तार को खारिज करती है और किन शर्तों पर नए सीईओ को रातो रात नियुक्ति प्रदान करती है।
ऐसे ही चुप्पी और मनमानी से बीसीए विवादों में है और वर्ष 2002 की तरह एक बार पुनः बीसीसीआई की आंखें बीसीए पर टेढ़ी है और सही मायने में कहे तो दुबई मुद्दे पर यह स्पष्ट हो गया है कि बिहार क्रिकेट संघ फिलहाल बीसीसीआई की काली सूची में है। जिसके जिम्मेवार कमोबेश बीसीए अध्यक्ष और उनकी कार्यसमिति है । अन्य राज्यों के साथ बीसीए को आमंत्रण नहीं मिलना बिहार क्रिकेट जगत का अपमान तो है ही अगर बीसीसीआई के द्वारा बीसीए की मान्यता रद्द की जाती है तो निश्चय ही बिहार के प्रतिभावान क्रिकेटरों का भविष्य एक बार पुनः अधर में होगा और इसके लिए भी जिम्मेदार अध्यक्ष और उनकी अवसरवादी टोली ही होगी।