बीसीए सचिव पर यह कहावत सही बैठता है” 100 चुहे खाकर बिल्ली हज को चली”–मो अरसद जेन

Khelbihar.com

Patna: बीसीए से निलंबित चलरहे सचिव महोदय के संविधान पर दिये ब्यान तथा संविधान के अंतर्गत कानुन सिखाते हुए स्वत: अध्यक्ष को कार्य मुक्त/पद मुक्त बताने के प्रयास को जैसे ही मैने ये खेल बिहार के पेज पर पढ़ा एक का एक मेरे दिमाग मे ये कहावत घुमने लगी के ” सौ चुहे खा कर बिल्ली हज को चली ” .

मतलब जब से सचिव महोदय बीसीए के सचिव बने हैं न जाने कितने संविधान का उलंघन सचिव महोदय ने खुद कर रखा है।
आज बीसीए अध्यक्ष को संविधान पढ़ा रहे सचिव महोदय जैसे ही पद पर आये थे संविधान तो छोड़िये अपने आप मे इतनी अकड़ ले आये की कलतक अपने पुत्र को टीम मे रखने के लिए पैरवी करने जिन जिन (अम्पायरों, जिला क्रिकेट के सिनियर खिलाड़ियों, पदाधिकारियों इत्यादि ) लोगों के पिछे पिछे घुमते फिरते थे और जिन लोगों ने इनको तथा इनके पुत्र को ईमानदारी के साथ निस्वार्थ होकर क्रिकेट का क, ख, ग, सिखाया था उनके लिए आज इनके पास समय नही होता कहते हैं की मैसेज छोड़ दिया करो जब देखूंगा तब टाईम निकाल कर करने की कोशिश करुंगा..।जिस आदमी मे सचिव बनते ही इतना घमंड और बदलाव आया हो वो संविधान का पाठ न पढ़ाये तो अच्छा है।

ये वही सचिव महोदय हैं जिनहों ने पदग्रहण करने के पाँच दिन के अंदर पता नही कौन से संविधान के अंतर्गत रणजी ट्रॉफी की टीम से पाँच खिलाडियों को वापस बुलाकर बीसीसीआई के चुने स्टैंड बाई खिलाड़ियों को दरकिनार करके अपने पुत्र सहित पैसे पैरवी वाले पाँच बाहरी खिलाड़ियों को बिहार रणजी टीम मे शामिल कर दिया था।


सुप्रीम कोर्ट ने लोढ़ा समिति के आदेश मे साफ कहा है की किसी भी राज्य क्रिकेट संघ के पदाधिकारी का कोई भी परिवार सदस्य उस राज्य के क्रिकेट टीम मे नही रह सकता, जबतक की पदाधिकारी पद से हट नही जाता।
इसका सब से बड़ा उदाहरण है हैदराबाद क्रिकेट संघ के अध्यक्ष मोहम्मद अज़हरुद्दीन जिनहोने अध्यक्ष रहने के कारण अपने पुत्र रणजी खिलाड़ी असद अब्बास को हैदराबाद रणजी टीम मे जगह नही दी…. क्या कल के बीसीए सचिव महोदय अपने आप को मोहम्मद अज़हरुद्दीन से बड़ा जानकार और सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बड़ा आदेश देने वाला समझते हैं।

अरे निलंबित सचिव महोदय थोड़ा अपने गिरेबान में झाँक कर देखिये न जाने कितने बाहरी खिलाड़ियों /पैरवी पुत्रों को आसंविधानिक रुप से आपने अपने आदेश से बिहार की स्टेट टीम मे चयन करवाया है तब तो आपको संविधान नही याद आया और जब निलंबित होने के बाद भी हर जगह घुसकर आसंविधानिक रुप से आदेश पारित किये जारहे हैं तब भी संविधान नही याद आरहा।

यहाँ हमाम मे सब नंगे हैं, क्या सचिव क्या अध्यक्ष और क्या 38 जिला संघ मे बैठे क्रिकेट के अंपड़ जाहिल पदाधिकारी। मेरा सचिव महोदय से विनर्म निवेदन है की अपने आप को बचाने के लिए संविधान और शराफ़त का चोला ओढ़ने की जगह बिहार के क्रिकेट से त्यागपत्र देकर एकाँत मे संविधान और क्रिकेट का ज्ञान प्राप्त करें..

अपनी निजी लड़ाई को बिहार के क्रिकेटरों और क्रिकेट प्रेमियों के सामने क्रिकेट तथा क्रिकेट के संविधान की लड़ाई दर्शाने का असफल परयास न करें।

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