खेलबिहार न्यूज़
पटना 22 जुलाई: सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित प्रशासकों की समिति (CoA) ने भारतीय क्रिकेट बोर्ड में फैली अनियमितताओं को दूर करने के लिए एक नियम बनाया था, जिसके तहत कोई भी व्यक्ति राज्य क्रिकेट संघ या बीसीसीआई में लगातार 6 साल किसी भी पद पर बना रहता है, तो उसे 3 साल के कूलिंग ऑफ पीरियड में जाना होगा।
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अब बोर्ड के संविधान में संशोधन करने के लिए और अपने अध्यक्ष सौरव गांगुली और सचिव जय शाह के कार्यकाल को बढ़ाने के लिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, इस पर चीफ जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एल नागेश्वर राव की बेंच दो सप्ताह बाद सुनवाई करेगा।
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तमिलनाडु क्रिकेट संघ (टीएनसीए) और हिमाचल प्रदेश क्रिकेट संघ (एचपीसीए) की ओर से पेश वकीलों ने पीठ को बताया कि उन्होंने इस मामले में याचिका दायर की है और इन्हें सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। टीएनसीए की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से कहा, ‘‘मैं तमिलनाडु क्रिकेट संघ की ओर से पेश हुआ हूं। हमने अंतरिम याचिका दायर की है जिसे आज सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया इसलिए कृपया करके निर्देश दें कि हमारी अंतरिम याचिका को न्यायालय में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए।’
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एचपीसीए की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने भी कहा कि उनके द्वारा दायर याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया है। पीठ ने कहा कि इन याचिकाओं पर दो हफ्ते के बाद सुनवाई होगी। भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने हाल में अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए 2016 के आदेश में संशोधन की मांग की थी जिससे कि वह बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट संघों का वार्षिक या द्विवार्षिक वित्तीय, अनुपालन और प्रदर्शन ऑडिट कर सकें।
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कैग ने अपनी याचिका 18 जुलाई 2016 के आदेश में संशोधन की मांग की थी जिसके जरिए उच्चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति आरएम लोढा समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया था जिसमें बीसीसीआई की शीर्ष परिषद और इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की संचालन परिषद में कैग के एक नामित को शामिल करना शामिल है।
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कैग ने कहा कि 35 राज्यों संघों में से केवल 18 ने अब तक नामांकन का आग्रह किया है जबकि 17 अन्य ने अभी नामांकित अधिकारियों से संपर्क नहीं किया है। उच्चतम न्यायालय ने 18 जुलाई 2016 के अपने आदेश में कैग के नामित को बीसीसीआई सदस्य के रूप में शामिल करने की न्यायमूर्ति लोढा समिति की सिफारिश से सहमत होते हुए कहा था कि इससे क्रिकेट की राष्ट्रीय संचालन संस्था के मामलों में पारदर्शिता और वित्तीय बेहतरी आएगी।