बीसीए में बेटी-पत्नी को उतराधिकारी बनाने की होड़,परिवारवाद के आगे दब रहे कार्यकर्ता:मनोज कुमार

  • पुत्र – भाई – भतीजावाद के बाद अब बीसीए में बेटी – पत्नी को उतराधिकारी बनाने की होड़ परिवारवाद के आगे दब रहे मैदान में समर्पित कार्यकर्ता:- मनोज कुमार

खेलबिहार न्यूज़

पटना 28 अगस्त: बिहार क्रिकेट संघ में सत्ता में काबिज रहने का मोह इस कदर बढ़ चुका है कि पुत्र भाई भतीजावाद से बढ़कर मामला अब बहू – बेटी तक आ पहुंचा है।ये बाते एमडीसीए सचिव व स्वत्रंत पत्रकार मनोज कुमार ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से कही है।


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बिहार क्रिकेट संघ में फिलहाल कई जिले ऐसे हैं जहां रातो रात तथाकथित सत्ताधारी कमेटी ने बागडोर अपने हाथ में रखने की नियत से अपनी बेटी और पत्नी तक को जिला क्रिकेट संघ की कमान थमा दी है।

जिम्मेवार कौन?-मनोज कुमार ने पूछा

ऐसे परिवारवाद के कारण वैसे समर्पित कार्यकर्ता कुंठा में हैं जिसने क्रिकेट को सींचने में दिन- रात में भेद नहीं मानी।बीसीए में नई कमेटी के पदस्थापित होने के साथ ही विवादों को नया ठौर मिलना शुरू हो गया है। हालात यह है कि वर्तमान परिस्थिति में बिहार क्रिकेट संघ दो फार हो चुका है। जहां एक गुट का नेतृत्व संघ के अध्यक्ष राकेश कुमार तिवारी कर रहे हैं ।वहीं दूसरे गुट की बागडोर सचिव संजय कुमार के हाथों में है।


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दोनों पक्षों में बढ़ते तकरार का परिणाम सचिव के तथाकथित बर्खास्तगी के रूप में सामने है। वही अध्यक्ष खेमा सत्ता की आड़ में आये दिन नई नई कमेटी के गठन और नए नए पदों पर पदाधिकारियों के मनोनयन और मनचाही मानदेय का निर्धारण करने में जुटा है। नतीजतन बीसीसीआई से बीसीए को खेल और खिलाड़ी के विकास मद में मिलने वाला अनुदान पिछले पाँच महीनों से इन तथाकथित अवैध नियुक्तियों पर खर्च किए जा रहे हैं। जिसमें अधिकांश नियुक्तियां संविधान के विपरीत बताई जा रही है ।


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जबकि खेल और खिलाड़ियों के विकास अथवा सहयोग के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं खर्च किया गया है। जबकि कोरोना संक्रमण के कारण बहुतेरे खिलाड़ी, अंपायर और अन्य तकनीकी पदाधिकारी बदहाली के कगार पर खड़ा बीसीए से गुहार लगाते रहे। बहरहाल बीसीए में विवाद का मामला अब कानूनी दायरे में है । बहुतेरे मामले लोकपाल की अदालत में विचाराधीन है। वही आधा दर्जन से अधिक मामला पटना हाईकोर्ट में विचाराधीन है ।क्योंकि कोरोना काल में हाईकोर्ट में कामकाज बाधित है नतीजतन प्रभावित पक्ष को कोर्ट के सुचारू होने का इंतजार है ।


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इधर सत्ता की बागडोर का धौंस जमाते हुए अध्यक्ष खेमा निरंतर जिला इकाइयों में हस्तक्षेप कर मनमाने ढंग से समिति का गठन कराये जा रही है। पिछले एक पखवारे में बेगूसराय और अरवल जिला इसका प्रमाण बना है जहां रातो रात जिला कमेटी का गठन किया गया ।मजे की बात यह है कि अरवल में निवर्तमान सचिव धर्मवीर पटवर्धन ने जहां अपनी पुत्री को जिला इकाई का बागडोर थमाया ।


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वही बेगूसराय के निवर्तमान सचिव संजय कुमार सिंह ने एक कदम आगे बढ़ते हुए जिला कमेटी की बागडोर अपनी पत्नी को थमा दी। यह समझना मुश्किल पड़ रहा है कि वैसी कौन सी विवशता है कि लोग क्रिकेट से जुड़े चेहरे को बागडोर देने की जगह अपनी बेटी पत्नी भाई भतीजा या वैसे लोगों को डोर थमा रहे जो यस मैन होते हैं। इसका मतलब जरुर कुछ ऐसा है कि लोग लाभजनित इस पद को खोना नहीं चाहते । या फिर स्टेटस सिंबल बनाये रखना चाहते हैं। यहां गौरतलब है कि इन दोनों पदाधिकारियों को बिहार क्रिकेट संघ के चुनाव में लोढ़ा कमेटी के अनुरूप अमान्य माना गया था और मतदान से वंचित रखा गया था ।


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सूत्र बताते हैं कि न सिर्फ इन दोनों पदाधिकारियों बल्कि बीसीए के दर्जन से अधिक पदाधिकारी ऐसे हैं जो लोढ़ा कमेटी के प्रस्ताव के अनुरूप पद पर रहने अथवा चुनाव लड़ने की वैधता खो चुके हैं। कहां तो ऐसे पदाधिकारियों को लोढ़ा कमेटी के प्रस्तावों के अनुरूप कूलिंग पीरियड में रहना है बावजूद इसके अध्यक्ष खेमा ने आनंद कुमार (नालंदा) संजय कुमार सिंह (बेगूसराय)धर्मवीर पटवर्धन (अरवल ) को बीसीए के विभिन्न पदों पर आसीन कर यह साबित कर दिया है कि लोढ़ा कमेटी के सिफारिशों को मानना इनकी बाध्यता नहीं है ।जबकि बिहार क्रिकेट संघ ने 2017- 2018 के सत्र में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार लोढ़ा कमेटी के प्रस्तावों को अंगीकृत करने का निर्णय लिया था ।


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इस आलोक में बीसीए से पंजीकृत जिला इकाइयों को लोढ़ा कमेटी के अनुरूप स्वरूप निर्धारित करने से लेकर चुनाव कराने का भी काम किया गया था। कालांतर में बीसीए के चुनाव के बाद सत्ता में आई न ई कमेटी ने विवादों को ऐसा तुल दिया कि ना सिर्फ बीसीए का संविधान बल्कि दर्जन अधिक जिला इकाइयों के अस्तित्व को ही अध्यक्ष की मनमानी से तार-तार होना पड़ा है। दूसरी तरफ सचिव संजय कुमार के द्वारा रिव्यू कमिटी का गठन कर वैसे जिले को चिन्हित किया जा रहा है जहां लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों की अनदेखी कर कामकाज किया जा रहा है।


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वैसे जिलों में सचिव के आदेश पर न सिर्फ कार्रवाई की जा रही है बल्कि लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के अनुरूप चुनाव भी संपन्न कराए जा रहे हैं ।अब देखना यह है कि सचिव का यह कदम बीसीए से पंजीकृत जिलों में नयी राह दिखाता है या वहां अध्यक्ष की मनमानी और वंशवाद की परंपरा कायम रहती है । या फिर लोढ़ा कमेटी के प्रस्ताव के अनुरूप नए चेहरे में क्रिकेट नया सवेरा लेकर आता है।

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