कार्य पर रोक के बाद BCL के कन्वेनर ज्ञानेश्वर गौतम ने BCA के एथिक ऑफिसर को किया मेल,

पटना : ग़लत का विरोध करने की सज़ा माना जाए या बीसीए की मनमानी मनाजाये? कई दोनों से लगातार ईस्ट चम्पारण डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व सचिव ज्ञानेश्वर गौतम ने बीसीए के नीतियों व कार्य का विरोध करते दिख रहे थे जबकि वह ख़ुद बीसीए के एक पदाधिकारी थे।

अब बीते कल 5 मई को बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के एथिक ऑफिसर ने एक मामले में सुनवाई करते हुई ज्ञानेश्वर गौतम के कार्यों पर रोक लगा दिया हैं। जिसके बाद श्री गौतम ने एथिक ऑफिसर को मेल किया हैं।

मेल में उन्होंने लिखा हैं ” 3 मई को मुझे किसी प्रशांत जी के द्वारा सूचित किया गया की आपके विरुद्ध एक वाद दायर किया गया है और आप 4 मई को सुनवाई के लिए तैयार रहे।4 मई को शाम 5 बजे तक जब मुझे कोई सूचना नहीं मिली तो मैने प्रशांत जी को मेल किया और कहा की मेरे खिलाफ अध्यक्ष राकेश तिवारी द्वारा आपराधिक साजिश की जा रही है और मैं सुनवाई में अवश्य उपस्थित रहना चाहता हूं,इसलिए मेल के साथ साथ मुझे इसकी सूचना मेरे मोबाइल नंबर पर भी दी जाय।

4 मई को मुझे सूचित किया गया की 5 मई की शाम में 5:30 बजे सुनवाई होगी।मैंने महोदय को मेल किया को अपने हेल्थ चेकअप के लिए मैं 13 मई तक बाहर रहूंगा ,कृपया मुझे 14 मई या उसके बाद का समय दिया जाय। और संध्या काल में मुझे ज्ञात हुआ की की महोदय ने मेरे कार्य पर रोक लगा दिया है।

महोदय ये कौन सी न्यायिक प्रणाली है जिसके तहत बिना मुझे सुने आपने मेरे कार्य पर रोक लगा दिया।महोदय क्या ये न्यायिक प्रणाली पर कुठाराघात नही है।महोदय मैं कब ईस्ट चंपारण डीसीए में उपाध्यक्ष बना ,कब वहां चुनाव हुआ,कौन इलेक्ट्रोल ऑफिसर थे,कब नॉमिनेशन हुआ ,कुछ भी पता नहीं है।

अध्यक्ष महोदय ने बीसीएल कन्वेनर के चुनाव के पहले मुझसे कुछ कागजातो पर हस्ताक्षर करवाए थे,बाद में वेबसाइट के माध्यम से मुझे पता चला तो मैंने मेल के माध्यम से इसपर अपनी कड़ी आपत्ति जताई थी। महोदय ऐसा कौन सा अपराध मेरे द्वारा हो गया है की महज तीन दिनों में आपने नोटिस और आदेश दोनो जारी कर दिया जबकि कई मामले आपके यहां महीनो से लंबित है।

महोदय मेरा आपसे आग्रह है की कृपया अपने आदेश को रिकॉल करे और मुझे सुने बिना कोई फैसला न करे अपितु मुझे आपकी इस न्यायिक पद्धति के विरुद्ध माननीय उच्च न्यायालय में फरियाद के लिए बाध्य होना पड़ेगा। क्योंकि आपका ये निर्णय न्याय के नैसर्गिक सिद्धात के विरुद्ध है।

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