खेलबिहार न्यूज़
पटना 9 दिस्मबर : विवाद किसी भी रूप में हल हो अच्छा होता है । लेकिन यह भी देखना होगा की विवादों की संस्कृति को कौन हवा दे रहा है। कौन फैला रहा है। कौन विवाद को राजनीति का मोहरा बनाकर बिहार क्रिकेट संघ को बर्बाद करने पर उतारू है। पटना जिला क्रिकेट संघ में आपसी द्वंद का निपटारा सत्ता के बँटवारा से आखिर हल हो गया। इसके लिए बहुतेरे लोग वैसे स्वयंभू मुखिया को क्रेडिट दे रहे हैं जिसने बिहार क्रिकेट संघ को गर्त में धकेलने में कोई कमी नहीं छोड़ी है।ये बाते एमडीसीए(उत्पल रंजन गुट)के सचिव मनोज कुमार ने कहि है।
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उन्होंने आगे कहा की उदाहरणनार्थ मुजफ्फरपुर, गया, मोतिहारी, सीतामढ़ी ,लखीसराय, किशनगंज ,पूर्णिया, मधेपुरा , सिवान, बेतिया ,वैशाली जैसे कई जिले हैं जहां अध्यक्ष के अनर्गल हस्तक्षेप और मनमाना फैसले ने क्रिकेट को विवादों का अखाड़ा बना रखा है और तो और अध्यक्ष ने संविधान का चीरहरण करते हुए लोकपाल में विचाराधीन मामले को भी स्वयंभू अधिकारी बन जिस ढंग से विवाद निबटाने का दम भरा वह कहीं से उचित नहीं था।
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अगर कोई विवाद निपटाया भी जाता है तो द्विपक्षीय सहमति से ही आकार लेता है। लेकिन जिस तरीके से अध्यक्ष राकेश कुमार तिवारी ने एक पक्षीय फैसला सुनाने का काम किया । वैशाली और कटिहार मामले में फैसले के बाद यू टर्न लिया , अपनी मनमानी में दरभंगा जिला क्रिकेट को काली सूची में डालने का काम किया , मधेपुरा जिला क्रिकेट संघ में जानबूझकर विवाद खड़ा किया, कटिहार जिला क्रिकेट संघ को जबरन विवादित सूची में शामिल किया, जहानाबाद जिला क्रिकेट संघ में समानांतर संगठन को हवा दी, गया जिला क्रिकेट संघ में विवाद उत्पन्न कराया, ऐसे कई मामले हैं जो अध्यक्ष की कारसाज़ी से विवादों में फंस गए नतीजतन बिहार क्रिकेट मैदान में फलने फूलने की जगह न्यायालय की गोद में खेल रहा है ।
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पीडीसीए का मामला आपसी विभेद और मनभेद का मामला था । इसे कब का निपट जाना चाहिए था। लेकिन राजनीति में ही इस विवाद को इतना लंबा खींचा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि विवाद हल होते ही क्या यह कमिटी वैध है ? अगर बीसीए प्रवक्ता के दावे को माने तो बीसीए के चुनाव में वोटिंग राइट के आधार पर मान्य इसे जिला इकाई के रूप में तुरंत चुनाव में जाने चाहिए क्योंकि इस जिला इकाई का कार्यकाल संपन्न हो चुका है।
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बहरहाल विवादों के निपटारे के लिए पीडीसीए को “बधाई” तो बनता ही है लेकिन बीसीए को ‘आईना” भी बनता है क्योंकि उन्हें यह भी समझ आनी चाहिए कि विवाद से किसी भी सूरत में क्रिकेट फल फूल नहीं सकता । क्रिकेट मैदान में खेले जाते हैं न कि न्यायालय की परिधि में । अगर यह सार्थक सोंच बन जाए तो सतही स्तर पर बीसीए को आगे बढ़कर अन्य जिलों के विवाद को भी सौहार्दपूर्ण माहौल में निपटाने की पहल करनी चाहिए ताकि मन भेद मिटाकर क्रिकेट के खेल को मैदान में साकार करने और बेहतर आकार देने की सामूहिक पहल प्रारंभ हो।
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