Home Bihar cricket association News, एमडीसीए सचिव मनोज कुमार ने फिर अनुदान राशि के कथित दुरुपयोग पर उठाए सवाल?

एमडीसीए सचिव मनोज कुमार ने फिर अनुदान राशि के कथित दुरुपयोग पर उठाए सवाल?

by Khelbihar.com

खेलबिहार न्यूज़

पटना 05 जुलाई: बिहार क्रिकेट संघ की ओर से एक साथ दो कार्यालय और एक अतिथिशाला के भाड़े का भुगतान यह दर्शाने को काफी है कि यह संस्था फिलहाल कारपोरेट कार्यालय बनने की राह अग्रसर है जहां पैसे की कोई अहमियत नहीं है ।

जब जैसे मन करे पैसे का उपयोग कर लें। भले ही वह कदम संविधान से अनुरूप हो या विपरीत। सूत्र बताते हैं कि यह कदम संविधान और बजट के विरुद्ध कदम है। ऐसे में बड़ा सवाल खड़ा होता है कि कहीं अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष की मिली भगत बीसीए का बँटाधार तो नहीं कर रहा ?विकास एक सतत प्रक्रिया है जो बदलते परिवेश के साथ आदमी, समूह और संस्था के साथ जुड़ता है।

बीसीए भी संभवतः आज कल उसी दौर से गुज़र रही है! जहाँ पुराने कार्यालय का भाड़ा 18 हजार में सिमटा था अब इस मद में तकरीबन 90 हजार खर्च किया जा रहा है। इतना ही नहीं एक अतिथिशाला भी अलग से लिया गया है। इस मद में भी बीसीए 25 से 30 हजार रुपये खर्च कर रही है। साथ ही पुराने कार्यालय का भी भुगतान चुका रही है। जो कहीं न कहीं ओवर बजट का प्रमाण बन रहा है। वैसे बीसीए की नयी कमिटी के लिए यह कोई नयी बात नहीं है।

पहले भी लोकपाल की नियुक्ति मनमाना मानदेय पर की जा चुकी है। यहाँ गौरतलब है कि पुरानी कमिटी की ओर से लोकपाल को एक लाख 15 हजार मानदेय दिया गया था। वहीं पावापुरी के एजीएम में नये लोकपाल के मद में सवा लाख प्रति माह मानदेय स्वीकृत किया गया था। बावजूद इसके नये लोकपाल को तीन लाख रुपये प्रति माह का मानदेय भुगतान किया गया है। जबकि उनकी नियुक्ति पर कथित मुहर 31 जनवरी 2020 के उस एजीएम में लगी जिसमें सचिव संजय कुमार, कोषाध्यक्ष आशुतोष नंदन सिंह, खिलाड़ी प्रतिनिधि अमिकर दयाल ( पुरूष )और कविता राय (महिला) को हिस्सा लेने से रोकने का आरोप है। फिर भी भुगतान नवम्बर माह 2019 से ही किया गया।


दूसरी तरफ बीसीए की ओर से सीओएम के पदाधिकारियों को निजी सचिव रखने के मद में भी भुगतान लाखों में किया गया है। जबकि बीसीए का संविधान इस तरह के किसी प्रावधान की इजाजत नहीं देता है! यहाँ सबसे बड़ी बात यह है कि अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सचिव ने निजी सचिव नहीं लिया है। कोषाध्यक्ष के नाम भी रौशन कुमार नामक निजी सचिव रखने की खबर है। हालांकि उसके नाम भुगतान होने की कोई सूचना नहीं है।

लेकिन जिला प्रतिनिधि संजय सिंह के निजी सचिव संजीव कुमार, संयुक्त सचिव कुमार अरविंद के निजी सचिव मनोज कुमार के मद में भुगतान की प्रक्रिया की जा चुकी है। पिछले माह शोर होने पर दोनों भुगतान लेने से मुकरे भी लेकिन बाद में संयुक्त सचिव के निजी सचिव ने डेढ़ लाख रुपये का भुगतान लिया है।यहाँ ध्यान देने की ओर बात है कि एक ओर अध्यक्ष कहते हैं कि वित्त से जुड़े मामले से कोई लेना देना नहीं है। दूसरी ओर इन तमाम भुगतान में अध्यक्ष राकेश कुमार तिवारी ने अनुमोदन दिया है और चाहे अनचाहे कोषाध्यक्ष आशुतोष नंदन सिंह ने भुगतान सुनिश्चित भी किया है

। ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष के मेल से बीसीए की उस राशि का दुरुपयोग हो रहा है जो सही मायने में बिहार क्रिकेट के विकास और खिलाड़ियों के बेहतरी पर खर्च होना चाहिए था। सही मायने में इस राशि का उपयोग जिलों में टर्फ़ विकेट बनाये जाने, खेल मैदान मुहैया कराने, आधारभूत संरचना के विकास, स्टेडियम का निर्माण, खिलाड़ियों को बेहतर सुविधा देने के मद्देनजर में होने चाहिए थे। अफसोस कि यह उम्मीद पहले पैसे के अभाव में अधूरा रहा अब पैसा होकर भी पूरी नहीं हो रही है। और इन्ही अधूरे ख्वाहिशो के बीच बीसीए नित् नये राह सृजित कर पैसा दोनों हाथों से लुटा रही है।

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