Home Bihar Cricket News, 18 साल के वनवास में क्रिकेट को जिंदा रखने वाले अब कहाँ खो गए-पूछता है बिहार?दे जबाब

18 साल के वनवास में क्रिकेट को जिंदा रखने वाले अब कहाँ खो गए-पूछता है बिहार?दे जबाब

by Khelbihar.com

खेलबिहार न्यूज़

पटना 10 सितंबर: पूछता है बिहार में आज बात करते है बिहार क्रिकेट के बारे मे की किस तरह कुर्सियों पर काबिज़ होने को लेकर मारामारी हो रही है जिसने वनवास में क्रिकेट जिंदा रखा वह अभी कहा खो गए है?

आपको बताते चले कि बिहार क्रिकेट एसोसिएशन(BCA) को बीसीसीआई से क्रिकेट में पुनः मान्यता 2018 में दी गई। पुनः इसलिए क्योकि जब झारखंड राज्य बिहार से टूट कर बना तो झारखंड के लिए नया एसोसिएशन जिसे झारखण्ड राज्य क्रिकेट एसोसिएशन दिया गया और बिहार क्रिकेट एसोसिएशन तो पहले से ही था।

जिसके बाद बिहार को 18 साल का बनवास देखना पड़ा हालांकि बीसीसीआई ने बीसीए को एसोसिएट सदस्यता दी थी लेकिन कई क्रिकट जानकार बताते है कि बिहार में मानो क्रिकेट ख़त्म ही हो गया था न कही कोई क्रिकेट एक्टिविटी न किसी को इसमें दिलचस्पी थी।

पूछता है बिहार की जिस समय बिहार क्रिकेट बनवास झेल रहा था उस समय अभी के वर्तमान में जिलों के अधिकारी एवं बीसीए पदाधिकारी में कितने ऐसे थे या है जो बिहार में क्रिकेट को जिंदा रखने का काम किया था?(कुछ लोगो को छोड़ दिया जाए तो)

उस समय क्या एकही जिला में दो-दो संघ बने थे जो कि अभी के कुछ जिलों में इसको लेकर ही विवाद चल रहा है कि हम सही जिला इकाई है तो हम जिला इकाई सही है? कडवा सच है कि उस समय कोई भी क्रिकेट अपने जिला में नही करबाते थे(कुछ पदाधिकारी एवं जिला को छोड़ दिया जाए तो)

बहुत कम ऐसे पदाधिकारी थे जो क्रिकेट को लेकर प्राइवेट या स्कूल टूर्नामेंट के सहारे अपने -अपने जिलों में क्रिकेट को जिंदा रखे थे लेकिन देखिए बिहार क्रिकेट की करिश्माई उस पदाधिकारी की अब सही मायने में काम करने का मौका तक नही मिलता है किसी पद पर नियुक्ति नही होता है।

पूछता है बिहार की क्या बिहार क्रिकेट में पहले कभी किसी ने उस पदाधिकारी का नाम सुना था जो आज मान्यता मिलने के बाद चर्चाओं में रहते है। क्या पहले किसी ने बिहार में क्रिकेट को पुनः मान्यता दिलाने के लिए बीसीसीआई को ईमेल या अन्य माध्यम से हर पहलू की सूचना देता था(कुछ पदाधिकारी या लोग को छोड़ कर)

बिहार क्रिकेट के कई जानकार बताते है कि बहुत कम इंसान थे उस बनवास में जो क्रिकेट के प्रति समर्पित था लेकिन आज उनकी कोई पूछ तक नही? क्या कुछ लोगो को छोड़ दिया जाए तो ऐसा था कि अभी जिस तरह क्रिकेट को लेकर लगातार बैठक या चर्चा होती है उस समय भी होता था?

पूछता है बिहार की आख़री जब ये सब था और जिस तरह आज क्रिकेट किसी भी पद या क्रिकेट से जुड़ कर बने रहने को लेकर लगातार आज सक्रिय है वह लोग उस समय कहा थे जब बिहार क्रिकेट खिलाड़ी बिहार छोड़ अन्य राज्यो जाने को मजबूर हो गया ।

पूछता है बिहार की आख़री जब क्रिकेट को अभी जितना प्यार से चाहते है उस समय भी(बनवास)चाहते थे तो ईशान किशन जैसे खिलाड़ी को बिहार क्यों छोड़ना पड़ा?

पूछता है बिहार आखरी जितना उथल पुथल अभी राज्यों के विभिन्न जिलों में क्रिकेट को लेकर है उतना उत्साह से उस समय क्यों कोई भी क्रिकेट पर या पदाधिकारी बनने पर ध्यान नही देता था।

क्योकि इसका जबाब यह हो सकता है कि उस समय उस पद या क्रिकेट से जुड़ने से लाभ नही था? क्योंकि बिहार क्रिकेट को बीसीसीआई से मान्यता नही मिली हुए थी। न ही बीसीए से कोई राशि जिला संघ को दी जाती इसलिए?

हालांकि कई क्रिकेट जानकर और पदाधिकारी बताते है कि बीसीए को मान्यता प्राप्त होने के बाद भी जिला संघ के विकाश के लिए 1 रुपये तक नही दिया गया हा कई वर्ष पहले उस समय एक बार पैसा जिला संघ को भेजा गया था ताकि जिला में विकास हो सके। अब एक बार फिर अध्यक्ष राकेश तिवारी के आने बाद 1 लाख रुपया मिला है।

पूछता है बिहार कबतक बिहार के खिलाड़ियों के साथ होता रहेगा खेलवाड़ ? एक जिला दो संघ रजिस्ट्रेशन तिथि जारी करता है किस-किस जिला संघ से रजिस्ट्रेशन करवाये खिलाड़ी?

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