Home Bihar cricket association News, बीसीए से टर्मिनेट रहते एवं फर्जी शपत-पत्र से कुमार अरविंद ने लड़ा है बीसीए चुनाव :मनोज कुमार

बीसीए से टर्मिनेट रहते एवं फर्जी शपत-पत्र से कुमार अरविंद ने लड़ा है बीसीए चुनाव :मनोज कुमार

by Khelbihar.com
  • हाई कोर्ट में आरोपित कुमार अरविंद कैसे संभाल रहे कार्यकारी सचिव सह संयुक्त सचिव का दोहरा भार !
  • बीसीए से टर्मिनेट रहते कैसे लड़ा चुनाव? फर्जी शपथ पत्र का क्या होगा ?
  • परमजीत और हृदयानंद का निलंबन 2019 में ही हो चुका है निरस्त !

खेलबिहार न्यूज़

पटना 9 नवंबर: मुज़फ्फरपुर जिला क्रिकेट संघ (उत्पल रंजन गुट) के सचिव मनोज कुमार ने एक बार फिर बीसीए अध्यक्ष गुट एवं बीसीए के संयुक्त सचिव एव कार्यकारी सचिव कुमार अरविंद पर कई सवाल उठाए है इनमे उन्होंने ने बताया है कैसे कुमार अरविंद फर्जी शपत पत्र देकर चुनाव लड़ा है।

उन्होंने बताया है कि ” बिहार क्रिकेट संघ के संयुक्त सचिव सह तथाकथित कार्यकारी सचिव कुमार अरविंद के द्वारा गिने-चुने खिलाड़ियों के संदर्भ में बीसीसीआई को लिखे गए पत्र में अनुशासनहीनता और निलंबन का का हवाला देते हुए इनके मैच फीस और अन्य सुविधा के संदर्भ में तमाम भुगतान पर रोक लगाने का आग्रह किया गया है ।।

उनके द्वारा जो पत्र लिखा गया है उस संदर्भ में सबसे बड़ी बात यह है कि जब 2019 में भोजपुर जिला क्रिकेट संघ को बीसीए ने ही टर्मिनेट कर रखा था तब किन परिस्थितियों में कुमार अरविंद बीसीए के चुनाव में सहभागी बने । जबकि भोजपुर जिला इकाई के टर्मिनेट कमेटी में वे पदाधिकारी थे ! ऐसे में सवाल उठता है कि अगर कुमार अरविंद स्वयं टर्मिनेट थे और चुनाव लड़ने के पात्र हो गए तो फिर किस मुंह से वह वैसे खिलाड़ियों पर कार्रवाई की बात करते हैं जिन्हें कथित तौर पर निलंबित किया गया है ?

यहां गौरतलब है कि भोजपुर जिला क्रिकेट संघ से जुड़े परमजीत सिंह और हृदयानंद पर संयुक्त सचिव कुमार अरविंद ने जिस निलंबन का हवाला दिया है उसे बीसीए की पूर्व कमेटी के द्वारा 25. 5 .2019 को आयोजित पावापुरी की आम सभा में निरस्त कर दिया गया था । इस संदर्भ में यह भी गौरतलब है कि जिस समय इन दोनों खिलाड़ियों पर भोजपुर जिला क्रिकेट संघ की ओर से निलंबन का चाबुक चलाया गया था उस समय भोजपुर जिला क्रिकेट संघ में संघीय विवाद कायम था और मामला लोकपाल की अदालत में विचाराधीन था ऐसे में निलंबन की प्रक्रिया ही बेमानी थी।

और तो और जिस कमिटी को बीसीए मान रही थी उसके द्वारा निलंबन की कोई बात नहीं मानी गई थी । यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बीसीए द्वारा इन खिलाड़ियों पर से न सिर्फ तमाम आरोप हटाए गए थे बल्कि दोनों खिलाड़ियों का चयन बीसीसीआई द्वारा संचालित अंतर्राज्यीय प्रतियोगिता के लिए बिहार टीम में भी किया गया था ।

बहरहाल यह पहला मौका नहीं है की बीसीए के तथाकथित कार्यकारी सचिव रहते कुमार अरविंद ने अनर्गल प्रलाप कर खिलाड़ियों के हितों से खिलवाड़ करने का काम किया है क्योंकि पूर्व में बिहार का प्रतिनिधित्व कर चुके खिलाड़ियों के टीए डीए पर कभी इनकी जुबान नहीं खुली और जब विवादों को लेकर बीसीए के खाता को फ्रीज कर दिया गया तब इन्होंने गंदी राजनीति का सहारा लेते हुए खिलाड़ियों का इनवायस मंगाया ।

इसके बाद इन्होंने मनचाहे ढंग से कुछ खिलाड़ियों को पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर प्रतिबंधित करने की कोशिश की है। इस संदर्भ में यह भी गौरतलब है कि इनके द्वारा पूर्व में बीसीए के अंपायर के साथ भी भुगतान में भेदभाव किया गया है जिनमें शाहिद अख्तर , बेगूसराय, विनय झा कटिहार शामिल है। कुछेक कोच महादेव, भोजपुर के साथ भी इनके मतभेद जग जाहिर हो चुके हैं ।

दूसरी ओर यह भी गौरतलब है कि इन्होंने खुद ही फर्जी शपथ पत्र के आधार पर बीसीए में संयुक्त सचिव के पद पर चुनाव लड़ा है। जिसके खिलाफ गया जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष संजय सिंह के द्वारा मुकदमा पटना हाईकोर्ट में विचाराधीन है । इस मामले में कोर्ट ने न सिर्फ संज्ञान लिया हुआ है बल्कि संयुक्त सचिव को उनके झूठे शपथ पत्र को लेकर नोटिस भी दी जा चुकी है ।

ऐसी परिस्थितियों में जिस पदाधिकारी पर खुद ही टर्मिनेट और फर्जी कागजात प्रस्तुत करने का आरोप हो ! वह किसी और के खिलाफ कैसे आरोप लगा सकता है ? अथवा कार्रवाई कर सकता है ! उल्टा चोर कोतवाल को डांटे कहावत चरितार्थ कर यह बड़ा सवाल है कि अगर आरोप लगना ही गुनाह का धोतक है तो हाई कोर्ट में मामला दर्ज होने के बावजूद कुमार अरविंद कार्यकारी सचिव और संयुक्त सचिव का कार्यभार कैसे संभाल रहे हैं?

किस हैसियत से चेक पर हस्ताक्षर कर रहे हैं ? और किस हैसियत से निजी सचिव के नाम भुगतान भी ले रहें हैं? जिसका जवाब शायद बिहार क्रिकेट संघ की जगह न्यायालय है दे सकता है!

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