Home Bihar बीसीए में राम-लक्ष्मण के वापसी पर रावण वध की उम्मीद : मनोज कुमार

बीसीए में राम-लक्ष्मण के वापसी पर रावण वध की उम्मीद : मनोज कुमार

by Khelbihar.com

पटना: बिहार क्रिकेट के गलियारों से आ रही चीखें, विरोधाभास , व्यापार, भ्रष्टाचार की आवाज पर आज हम नजर डालते हैं तो पिछले दो वर्षों में बिहार क्रिकेट की जो दुर्गति हुई है शायद बिहार क्रिकेट के अबतक के इतिहास में ऐसा कभी देखने सुनने को नहीं मिला था ।यह बाते मुज़फ्फ़रपुर जिला क्रिकेट संघ(उत्पल रंजन गुट)के सचिव एवं स्वतंत्र पत्रकार मनोज कुमार ने कही है.

शायद यही वजह है कि खिलाड़ियों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध का बिगुल फूंक दिया है और अब खुद ही अपने हक के लिए लड़ना शुरू कर दिया है। बीसीए मैं व्याप्त बदहाली के इस आलम के बीच लोगों की निगाहें न्यायालय पर टिकी है जहां से बीसीए सचिव और संयुक्त सचिव कुमार अरविंद को न्याय मिलने की उम्मीदें हैं। ऐसे में क्रिकेट प्रेमी और खिलाड़ियों को उम्मीद है कि राम-लक्ष्मण की जोड़ी अगर पुनः सत्ता पर काबिज होते हैं तो निश्चय ही रावण का वध संभव हो सकेगा।

अगर मौजूदा हालात पर नजर डालें तो बिहार क्रिकेट में फिलहाल पैसे और पैरवी का नंगा नाच हो रहा है । मगर मजाल नहीं है कि जिलों के पदाधिकारी चूं तक कर दें। दोगली नीति वाली बात तो तब हो जाती है जब 31 जनवरी 2020 को संपन्न एजीएम में सचिव संजय कुमार पर बेबुनियाद आरोप लगा कर निलंबित करने में सहयोगी जिला संघ के पदाधिकारी आज वैसे ही करतूतों पर मौन बने हैं।

उन्होंने कहा”  उन्हें कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट से कोई दरकार नहीं है ।आज उन्हें सीओएम के पदाधिकारियों के खाते में दिन दूनी रात चौगुनी पैसे की हो रही बढ़ोतरी से कोई लेना देना नहीं है । आज उन्हें यह भी दरकार नहीं है की प्रतिभा संपन्न खिलाड़ी बाहर हाथ पैर मारने को विवश होगा और पैरवी पुत्र टीम में होंगे। आज उन पदाधिकारियों को इस बात से भी कोई लेना देना नहीं है कि क्रिकेट भले गर्त में चला जाए तो जाए उनके संगठन पर कोई आंच ना आने पाए। उन्हें इस बात से भी कोई मतलब नहीं है कि बिहार टीम को बिचौलियों दलालों के हाथों बेच दिया जाए ।

शायद इन जिला पदाधिकारियों को याद हो कि 31 जनवरी 20-20 के वार्षिक आम सभा में संजय कुमार पर मनगढ़ंत आरोप लगाकर पहले कार्य पर रोक और फिर निलंबन से लेकर बर्खास्तगी का मनमाना फरमान जारी कर दिया गया था । कमोबेश मौकापरस्त अध्यक्ष ने ऐसे ही कुकृत्य से संयुक्त सचिव सह प्रभारी सचिव कुमार अरविंद को भी सीओएम से बाहर का रास्ता दिखा दिया ।

ताकि उनकी मनमानी और भ्रष्टाचार का खेल बेरोकटोक चलता रहे ।बताया जाता है कि इन दोनों पदाधिकारियों का जुर्म इतना ही था की बीसीए में रहते दोनों ने खिलाड़ियों के साथ न्याय करने की कोशिश की थी । भ्रष्टाचार में लिप्त व्यवस्था को नया आयाम देने की कवायद की थी और तथाकथित लाल फीताशाही बनकर सत्ता चलाने वाले पदाधिकारियों के खिलाफ नजरें तानने का काम किया था ।

ऐसे पदाधिकारी पिछले दिनों बीसीए के उपाध्यक्ष दिलीप सिंह के पुत्र शिवम कुमार के बिहार टीम में शामिल किए जाने पर मौन साध गए । बीसीए के एक पदाधिकारी धर्मवीर पटवर्धन की पुत्री यशोदा पटवर्धन के अरवल के सचिव होने पर भी मौन बने रहे ।जबकि दबाव पर शंकरदेव चौधरी के पुत्र गोविंद चौधरी और आनंद कुमार के पुत्र को टीम में शामिल किए जाने पर भी चुप्पी के हालात बने रहना साबित करता है कि बिहार क्रिकेट संघ किस दिशा में अग्रसर है।

ऐसे में यह कयास लगाना गलत नहीं कि जब तक सचिव और संयुक्त सचिव बीसीए में वापस नहीं आते हैं तब तक बिहार क्रिकेट की यह दमनीय स्थिति बनी रहेगी। बीसीए दलालों और खरीद फरोख्त का अड्डा बना रहेगा। इसके लिए मूक दर्शक बने लोभी जिला के लोग कुछ कर नहीं सकते। सिर्फ सदन में बैठने , सादे कागज पर अपने हस्ताक्षर करने, पकवानों का लुत्फ उठा अपने घर की ओर लौट जायेंगे ।

ऐसे में यह आवश्यक है कि शोभा की वस्तु बने इन जिला पदाधिकारियों की जगह वैसे पदाधिकारी बीसीए की बागडोर के नायक बने । जो बिहार क्रिकेट की बदहाली को खत्म करें और खिलाड़ियों के विकास का काम कर बीसीए को वह मुकाम दें जो देश स्तर पर बीसीए का डंका बजाये।

Related Articles

error: Content is protected !!