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मुज़फ्फरपुर 19 जुलाई: मुज़फ्फरपुर जिला क्रिकेट संघ के सचिव मनोज कुमार व वरीय पत्रकार ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से बिहार क्रिकेट संघ द्वारा शीर्ष पदाधिकारियों के नियुक्तियों पर सवाल खड़े किए तथा बताया है किसी की भी नियुक्ति कैसे की जाती है।
मनोज कुमार ने कहा ” बीसीसीआई के एपेक्स कौंसिल की बैठक में लंबी बहस के बाद सीईओ और आपरेशन जीएम पर पर योग्य अधिकारी के चयन हेतु विज्ञापन प्रकाशित कराने का निर्णय लिया गया। संभवतः होना भी यही चाहिए क्योंकि इन महत्व पूर्ण पदों पर नियुक्ति आँखें मुंदकर तो नहीं की जा सकती! इसके लिए अभ्यर्थी की दक्षता, योग्यता और अनुभव का मूल्यांकन भी आवश्यक है।
मगर इन तमाम दायित्वों की अनदेखी कर बिहार क्रिकेट संघ ने रेवड़ी की तरह कर दी पदों का बंटवारा। न कोई विज्ञापन, न कोई आवेदन।सूत्र बताते हैं कि वक्त की नजाकत के अनुसार मनमाना ढंग से अध्यक्ष द्वारा कर ली गयी आपरेशन जीएम, जीएम क्रिकेट, जीएम इन्फ़्रा और जीएम फाइनेंस की नियुक्ति।
हैरत की बात यह है कि इन कथित मनमानी नियुक्ति के विरुद्ध मनमाना “मानदेय” का भी निर्धारण करने की खबर है। अगर बीसीए सूत्रों की माने तो सीईओ पद पर भी गुपचुप बहाली कर ली गयी है। मौजूदा सीईओ सुधीर झा की जगह मनीष कुमार नामक सीईओ बनाये गये हैं। इनका भी मनमाना वेतनमान निर्धारित किया जा चुका है। जो कि बीसीए के अधिकांश जिला सदस्य, यहाँ तक कि बीसीए की सीओएम के सभी सदस्यों के भी संज्ञान में नहीं थी।
श्री कुमार ने आगे कहा ” मुँहामुही बात चली तब जाकर कानों कान यह बात उजागर हो रही है। जबकि अभी तक सीईओ श्री झा ने न तो इस्तीफा दिया है और न तो उनका कार्यकाल खत्म हुआ है। ऐसे में इस तरह की नियुक्ति? रात के अँधेरे में बहाली का फैसला? बीसीए में मनमानी का इससे बड़ा प्रमाण और क्या चाहिए? वैसे पूर्व में भी लोकपाल और एथिक आफिसर की नियुक्ति पर बीसीए में घमासान सार्वजनिक हो चुका है और तो और मनमानी और अनियमिता के आरोप में पटना हाई कोर्ट ने बीसीए के लोकपाल के कामकाज पर रोक लगाने संबंधी आदेश भी दे रखी है।
बहरहाल इस मामले में बीसीसीआई ने बीसीए को “आइना” दिखाने का काम किया है । जहाँ बीसीए ने प्रमुख पदों पर नियुक्ति में पारदर्शिता की “अनदेखी” कर “मनमानी” को तरजीह दी। इन नियुक्तियों में कहीं न कहीं “स्वार्थो” की बू आती है। वहीं बीसीसीआई ने इन पदों पर निविदा के माध्यम से आवेदन की बात कर न सिर्फ पारदर्शिता को तरजीह दी है बल्कि भ्रष्टाचार और अनियमिता जैसे लांछन से भी संगठन को बचाने का काम किया है! यह कदम कहीं न कहीं जस्टिस लोढा कमिटी के प्रस्तावों का समर्थन और संघीय ढांचे के अनुरूप है।