Home Bihar बीसीए में “विवाद” खड़ा करने वाले बात करते हैं “अनुशासन” का: मनोज कुमार

बीसीए में “विवाद” खड़ा करने वाले बात करते हैं “अनुशासन” का: मनोज कुमार

by Khelbihar.com
  • बीसीए में “विवाद” खड़ा करने वाले बात करते हैं “अनुशासन” का
  • खिलाड़ियों पर “डंडा” चला तो होगा “बवंडर”: मनोज कुमार

खेलबिहार न्यूज़

पटना 21 दिसंबर: बिहार क्रिकेट संघ में जारी आपसी खींचातानी और अहम भरे विवाद का नतीजा है कि आज खिलाड़ी पशोपेश में है। उनकी उलझन खेमेवाजी है। जिसमें यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि आखिर वे हाथ थामे तो किसका ? एक तरफ अध्यक्ष के फरमान हैं तो दूसरी ओर सचिव के दिशा निर्देश ।

आखिर खिलाड़ियों का क्या दोष ? उनकी मंशा और मंजिल तो क्रिकेट है! जहां वे जीना मरना चाहते हैं! इसके इतर बिहार क्रिकेट इन दिनों विवादों के उस भंवर में पीस रही है जहां खिलाड़ियों को खेल मैदान की जगह राजनैतिक भंवर में पीसना पड़ रहा है । वर्तमान परिदृश्य में देखें तो जहां अध्यक्ष खेमे की ओर से मुश्ताक अली ट्रॉफी के लिए जोनल स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन कराया जा रहा है ।

वही सचिव खेमे की ओर से भी ट्रायल के पश्चात जोनल स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता जारी है । इसमें अध्यक्ष खेमे की ओर से तथाकथित कार्यकारी सचिव कुमार अरविंद की ओर से तथाकथित समानांतर क्रिकेट प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों, तकनीकी पदाधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। यह बात भविष्य के गर्भ में है कि इस मामले में कैसे और कितनी कार्रवाई होगी ? क्योंकि खिलाड़ियों के आगे यह दुविधा है कि वह अध्यक्ष की बात माने या सचिव की बात माने ।

क्योंकि अध्यक्ष राकेश तिवारी के दावा पर बीसीसीआई ने अब तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि संजय कुमार बिहार क्रिकेट संघ के सचिव पद से बर्खास्त कर दिए गए हैं । अब तक के पत्राचार में बीसीसीआई ने मीरा पांडे की अगुवाई में संपन्न हुए चुनाव में निर्वाचित मानद सचिव संजय कुमार को ही बीसीए का उत्तराधिकारी मान रही है । ऐसे में खिलाड़ी किस दृष्टिकोण से सिर्फ अध्यक्ष की बात मानेंगे ?

यह बात कार्यकारी सचिव को कौन समझाए ! जहां तक कार्रवाई का सवाल है पहले भी क्रिकेट एडमिन के द्वारा जारी पत्र के आलोक में सचिव द्वारा बनाए गए जोनल चयनकर्ताओं ने फ़ब्ती कसकर यह बता दिया है कि वर्तमान हालात में अनुशासन की बात करना बेमानी है। दूसरी ओर पिछले सत्र में बिहार रणजी, विजय हजारे और मुस्ताक अली क्रिकेट प्रतियोगिता में बिहार टीम का प्रतिनिधित्व करने वाले तकरीबन 40 खिलाड़ियों का सचिव के साथ आयोजनों में सहभागी होना यह साबित करता है कि फिलहाल किसी भी गुट के द्वारा किसी भी खिलाड़ियों पर अनुशासनात्मक डंडा चलाने का मतलब “बवाल” ही होगा ! क्योंकि बिहार क्रिकेट संघ को खिलाड़ियों को कठघरे में खड़ा करने की जगह खुद ही ऐसे विवादित माहौल खड़ा करने के लिए जिम्मेदारी बीसीए लेनी चाहिए थी और कमेटी ऑफ मैनेजमेंट के निर्वाचित सदस्यों को आगे बढ़कर विवाद पाटने की पहल करनी चाहिए थी ना कि शोभायमान अधिकारी बनकर अपना हित साधने और मामूली मस्काबाजी पर विवाद में सहभागी होना चाहिए था।


बहरहाल बिहार क्रिकेट विवादों के भंवर में पीस रहा है । कड़ाके की सर्दी में खिलाड़ी दोनों खेमों से आयोजित क्रिकेट प्रतियोगिता में सहभागी होना चाह रहे हैं। बावजूद इसके इनके शरीर से बहते पसीने का परिणाम क्या आएगा फिलहाल भविष्य के गर्भ में है । बिहार टीम किसके नेतृत्व में खेलेगी? अध्यक्ष या फिर सचिव के! मंथन शुरू है! दोनों खेमों में अंदरूनी हलचल है जो ठंड में भी उनको पसीना दिला रही है।

लेकिन इतना स्पष्ट है कि बीसीए से संबद्ध जिला इकाइयों की चुप्पी निश्चय ही बिहार क्रिकेट के भविष्य को अंधकार में धकेलने में सहायक हो रहा है। क्योंकि इनकी सहमति ही बीसीए में काबिज सत्ता के वैसे दलालों को मनमानी का खुला अधिकार दे रहा है जो कहीं से भी बीसीए अथवा बिहार क्रिकेट की हित नहीं चाहते। उनकी निगाहें हर हाल में कुर्सी और पैसा पर है। ऐसी स्थिति कहीं न कहीं लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए आघात है।

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