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“अजब बिहार की गज़ब कहानी” जरूर पढ़ें

by Khelbihar.com

खेलबिहार न्यूज़

पटना 4 जून: बिहार क्रिकेट के इतिहास की जानकारी के लिए पढ़े ” अजब बिहार की गज़ब कहानी” यह कहानी खेलबिहार के सूत्रों से प्राप्त हुई ।सूत्र बताते है कि सबसे बड़ी खासियत इस कहानी लेखनी की यह है कि इस कहानी में किरदार निभा रहे कलाकारों का नाम नहीं लिखा गया है ।।

सूत्र ने बताया इस कहानी को उस व्यक्ति ने लिखा है जो इस पूरी घटना के साक्षी है कहानी के पार्ट-1 में 2000-05 ई का वर्णन है

सूत्रों के अनुसार यह कहानी इस प्रकार से है” इस कथा का शुरुआत बर्ष 2000 से करते है।
इसी वर्ष बिहार विभाजन की नींव रखी गई थी और नवंबर 2000 में झारखंड राज्य का गठन हो चुका था और इधर अविभाजित बिहार क्रिकेट संघ में भी विभाजन को लेकर चर्चा जोर पकड़ रही थी। कुछ ही दिनों के बाद अविभाजित बिहार क्रिकेट संघ का विशेष आम सभा बुलाई गई और उस बैठक में आम राय से र्सैद्धांतिक रूप से विभाजन के मार्ग प्रशस्त किया गया। इसके लिए दो Ad-hoc committee का गठन किया गया एक बिहार के लिए और दूसरा नए राज्य झारखंड के लिए।

इस कमिटी में अविभाजित बिहार क्रिकेट संघ के तत्कालीन उपाध्यक्ष को अध्यक्ष बनाया गया था। बिहार का नेतृत्व एक मजबूत एवं बड़े पुलिस अधिकारी के हाथों में दिया गया और उनके सहयोग के लिए कई सदस्य भी बने।जो बिहार में संवैधानिक प्रक्रिया स्थापित करते हुए एक नया संविधान ड्रॉफ्ट कर अगले SGM में पेश कर अनुमोदन करवाना था। यहां तक तो सब ठीक- ठाक चल रहा था। पटना में बिहार के सभी जिलों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक का आयोजन किया गया जिसमें संविधान ड्रॉफ्ट के संदर्भ में चर्चा करनी थी और इसी बैठक में एक नया ट्विस्ट आया एक जिला (sàran) के अध्यक्ष इस बैठक भाग ले रहे थे जो एक वरीय पुलिस अधिकारी थे और वो अपने वरीयता के कारण बैठक को संचालन करना चाहते थे।

लेकिन उनका यह आचरण किसी को भी पसंद नही आ रहा था। एक पूर्व क्रिकेटर (विधायक जी) जो अभी अभी क्रिकेट के राजनीत में कदम रखा था, चेयर के तरफ मुखातिब हो कर सवाल किया कि यह पॉर्टकॉल के विपरीत है आप अध्यक्ष है आप इस बैठक को संचालित करें। इसके बाद प्रेसीडेंट ने प्रतिकार किया और दोनों के बीच बहस शुरू हो गई और बैठक को स्थगित किया गया। कुछ दिनो के बाद बैठक हुई और उसमें संविधान को पारित किया गया। जिसे विशेष आम सभा में पास करवाना था।इस सविधान में ऎसा व्यवस्था किया गया कि जीतेने लोग थे उस से कहीं ज्यादा पद थे।

खैर फरवरी 2001 को अविभाजित बिहार क्रिकेट संघ की बैठक हुई और उस बैठक में यह तय हुआ कि जिलों को राजस्व के आधार पर विभाजित किया जाए और जो सदस्य है वो अपने इच्छा अनुसार राज्य को चुन सकते है और यह सब हो जाने के बाद चुनाव की तिथि की घोषणा भी कर दी गई। चुनाव की तिथि २०/०५/२००१ तय हुआ।

यहां तक तो सब कुछ ठीक चल रहा था लोग अध्यक्ष के नेतृत्व में काम कर रहे थे।करीब करीब सभी लोग यह मानते थे कि बीसीए के अध्यक्ष पद निर्विरोध चुना जायेगा और जो भी पेंच था वो अन्य पदों के लिए था। यहां यह बताना उचित होगा कि उस समय 6 लोग ही रणनीतिकार थे। उसमें एक पुलिस कैप्टन,(कप्तान) दूसरा पूर्व क्रिकेटर पटना क्रिकेट में उनका तूती बोलता था, (दादा)तीसरा
मुजफ्फरपुर के सचिव थे,चोथा और पांचवां समस्तीपुर और सीतामढ़ी के सचिव (अम्बेडकर जी)थे और अंतिम वरीय राष्ट्रीय अंपायर ( पितामह) थे। बाकी सब दूसरे पंक्ति में थे। अब शतरंज की बिसात बिछ गई थी। वर्चस्व के लिए शह मात का खेल अंदर ही अंदर ज़ोर पकड़ रहा था।

इसी बीच एक जानकारी मिली कि कप्तान साहेब और पितामह एवं अन्य लोगों के साथ एक गुप्त मीटिंग हुई है जिसमें बीसीए चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन कर लिया गया है। यह ख़बर सुनकर अन्य लोगों के अंदर बेचैनी महसूस होने लगी। अटकलें और अफ़वहों का बाज़ार भी गर्म था। अचानक बंद कमरे में बैठकों का दौर शुरू हुआ जो लोग पटना के बाहर के थे उन्हें पटना पहुंचने के लिए कहा गया। अभी तक सभी लोग एक साथ काम कर रहे थे ।

लेकिन अब दो ग्रुप अलग अलग काम करने लगे।एक ग्रुप का नेतृत्व कप्तान कर रहे थे और दूसरे का दादा।दोनों ही ग्रुप बहुत ही खामोशी और सावधानी बरतें रहे थे। इसी बीच एक और ख़बर आई की कप्तान ग्रुप ने जो उम्मीदवरों की सूची बनाई थी वो लीक हो गया है और उस सूची में सिने स्टार बिहारी बाबू अध्यक्ष पद के उम्मीदवार होंगे, वरीय पुलिस अधिकारी कार्यकारी अध्यक्ष, कप्तान साहेब सचिव, पितामह को खजांची,और दादा को उ प सचिव।दादा ग्रुप में चिंतन और चर्चा का दौर चल रहा था। दादा ने पद लेने से साफ इंकार कर दिया था। वो सिर्फ सचिव पद के लिए इच्छुक थे।

इसी बीच एक पूर्व क्रिकेटर (विधायक जी)जो हाल ही में क्रिकेट के राजनीत में कदम रखा था।दादा से बहुत ही मधुर संबंध था और
अपने कार्य एवं व्यवहार से अन्य लोगों को भी प्रभावित कर रहा था।चर्चा के दर्मियान उसने एक बात कहीं अगर हम लोगों को लड़ना है तो बिहारी बाबू से बड़ा कोई व्यक्तिव को खोजना होगा। तपाक से कई लोगों ने नामों का सुझाव भी देना शुरू कर दी और वो नाम राज्य के एक बड़े राजनेता का नाम आया।जिस पर सभी राज़ी थे और यही से एक नया मोड़ आया। अब दादा ग्रुप में अचानक उत्साह और उल्हास का माहौल दिखने लगा।

दादा ग्रुप ने उम्मीदारों की सूची को खूब नेगेटिव माइलेज दिया और लोगों के प्रतिक्रिया भी सुची के खिलाफ आने लगा । दादा ग्रुप दोनों फ्रंट पर कार्य कर रहे थे। लेकिन समस्या यह था कि राजनेता से संवाद कैसे स्थापित हो। इसके लिए वाणिज्यकर मंत्री को माध्यम चुना गया और मंत्री जी से दादा का बहुत अच्छा सम्बन्ध था। मंत्री जी की अगुआई में राजनेता के आवास पर पहुंचे र्और उनके बीच यह प्रस्ताव रखा गया लेकिन राजनेता ने क्रिकेट में आने से साफ इंकार कर दिया और सभी लोग निराश हो कर लौट आए। मंत्री जी को मनाया गया की आप अकेले में इस मसले पर बात करें और मंत्री जी ने आश्वसन दिया कि कोशिश करते हैैं।

इस दिशा में मंत्री जी ने अपने तरफ से प्रयास जारी रखा और अपने मिशन में सफल हुए। एक बार फिर दादा ग्रुप में उत्साह एवं खुशी का माहौल दिखने लगा। एक बार फिर
मंत्री जी के साथ सभी लोग राजनेता जी के आवास पर गए और उन्हें विस्तार से जानकारी दी गई। इसी बातचीत के दौरान उन्होंने मंत्री जी से पूछा कि तुम किस पद पर हो और मंत्री जी ने कहा कि मै किसी पद नहीं हूं।

बिना देर किए ग्रुप ने कार्यकारी अध्यक्ष के लिए पेशकश कर दिया। फिर वो सचिव के लिए पूछा और तुरंत दादा ग्रुप ने दादा का नाम पेश किया।इस प्रकार तीन महत्पूर्ण पदों की घोषणा वहीं पर हो गई। राजनेता से नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर लिया गया और अब दादा ग्रुप एक विजेता टीम के तरह देख रहा था। ऊपर जितनी भी गतिविधि हो रही थी, सब गुप्त तरीके से अंजाम दिया जा रहा था। घटनाक्रम बहुत तेज़ी से करबट ले रहा था।कल तक कप्तान ग्रुप स्थिति को नियंत्रित कर रही थी और अब दादा ग्रुप में राज्य के सबसे प्रभावित राजनेता और मंत्री जी के जुड़ जाने के कारण मजबूत हो गई। कप्तान ग्रुप के पास समर्पण के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। अगले दिन मंत्री जी के नेतृत्व में होटल सम्राट में एक मीटिंग हुई और उस मीटिंग में कप्तान भी शरीक हुए अपने दल बल के साथ।इसी मीटिंग में विभिन्न पदों के लिए उम्मीदवारों का चयन किया गया। कोषाध्यक्ष पद के लिए समस्तीपुर के सचिव का नाम तय हुआ।

इसमें कप्तान और पितामह को उपाध्यक्ष एवं एक होटल मालिक ( केरी पैकर) को कार्यकारणी सदस्य के सुची में रखा गया और इसके अलावा दो पूर्व क्रिकेटर (एक विधायक जी)और (एक अन्य जो बाद में इस्तीफा दे दिया था) को कार्यकारणी में जगह मिली। क्रिकेटर के नाम का प्रस्ताव अम्बेडकर जी ने दिया था। सभी लोगों का नामांकन जमशेपुर जा कर जमा किया गया। उम्मीद की जा रही थी कि चुनाव निर्विरोध हो जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ । कुछ पदों पर नामांकन दाखिल किया गया और वो पद थे सचिव, कोषाध्यक्ष एवं कार्यकारणी।दादा को इंगित कर रहा था कि लड़ाई जारी रहेगी।दादा ग्रुप विजयी हुईं और अब एक कमिटी का गठन हो गया। कमिटी की पहली मीटिंग में दो संयुक्त सचिव बनाया गया (अम्बेडकर जी) और दूसरा बड़े लिकर व्यपारी(टाइकॉन्न) गठन के बाद तुरन्त BCCI को पत्राचार के माध्यम से सूचित किया गया और जुलाई २००१ को बीसीसीआई ने दो विशेष आब्जर्वर भेजा जो स्थिति का जायजा ले रहे थे ।

उन्हें दो तीन दिनों के भीतर रिपोर्ट सब्मिट भी करना था।रिपोर्ट बीसीए के अनुकूल था। २५ अगस्त २०००१ को बीसीसीआई की वर्किंग कमिटी की बैठक थी और उसी बैठक में बिहार क्रिकेट संघ की नई कमिटी को recognize कर बिहार को बीसीसीआई के वार्षिक बैठक में बैठने के लिए अपने प्रतिनिधि का नाम भेजने का प्रस्ताव दिया। सभी लोगों मे खुशी की लहर दौड़ रही थी। इसी बीच पितामह डालमिया जी का एक प्रस्ताव लेकर आयें और वो चाहते थे की अरुण नारायण सिंह को बोर्ड के वार्षिक बैठक में बिहार क्रिकेट संघ का प्रतिनिधित्व करने दिया जाए।

इसके पहले आजतक के एडिटर प्रभु चावला का राजनेता से ए सी मुथैया के पक्ष मे वोट के लिए बातचीत हुईं थीं। संयोग से उस वक्त राजनेता के आवास पर विधायक जी भी मौजूद थे। राजनेता ने विधायक जी को बुलाया और मुथैया जी के बारे में जानकारी प्राप्त की। विधायक जी भी विस्तार से मुथैया जी के बारे में जानकारी दी। विधायक जी ने राजनेता के आवास पर घटित घटनाक्रम की पूरी जानकारी दादा को दी। अधिकतर लोग मुथैया जी के समर्थन में थे। इसलिए पितामह के उस प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया गया। लेकिन कुछ ही दिनों के बाद एक ख़बर आई कि रांची हाईकोर्ट में याचिका दायर किया गया है।

याजिका दायर करने वाला शख्स का नाम देवेन्द्र सिंह जो जमशेपुर के रहने वाले हैं और बीसीसीआई के द्वारा बिहार क्रिकेट संघ पटना को मान्यता देने की प्रक्रिया को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि फरवरी २००१ में अविभाजित बिहार क्रिकेट संघ के विशेष आम सभा में लिये गए निर्णय को
नजरअंदाज करते हुए बोर्ड ने झारखंड की अनदेखी कर बिहार को मान्यता दी है। मिनट्स के अंतिम परा में लिखा था कि जब तक बिहार एवं झारखंड को बीसीसीआई मान्यता नहीं देती है तब तक अविभाजित बिहार क्रिकेट संघ काम करेगी जो सरासर गलत था इस तरह की कोई चर्चा हुआ ही नहीं था। इसमें बिहार को पार्टी भी नहीं बनाया था। लेकिन बिहार ने भी IA दाखिल किया और सुनवाई हुई।

कोर्ट ने फैसला दिया कि बीसीसीआई के फूल बॉडी यह निर्णय ले कि बिहार क्रिकेट संघ,पटना या जमशेपुर स्थित बिहार क्रिकेट संघ सही है। मामला एक बार फिर बोर्ड के पास चला गया। इस बीच बोर्ड मीटिंग के लिए दादा ने अपना नाम भेज दिया था।लेकिन उनके साथ मंत्री जी और टायकॉन्न भी चेन्नई साथ में गए थे।यह जानकारी मंत्री जी को नहीं थी कि ऑथराइजेशन लेटर दादा के नाम है। चेन्नई से प्राप्त जानकारी के अनुसार डालमिया जी और दादा से मुलाकात हुई और दोनों के बीच बातचीत के दौरान दादा को कहा कि हमलोग एक ही ज़ोन के है इसलिए मुझे मदद करो।दादा ने कहा सॉरी सर मैं मुथैया जी के लिए प्रतिबद्ध हूं यह अध्यक्ष का निर्देश है।

डालमिया जी ने कहा कि मुझे अध्यक्ष से बात
करवाओ दादा ने कहा मेरे पास नंबर नहीं है। अगले दिन बोर्ड की मीटिंग शुरू हुई दादा बिहार को और अरुण नारायण सिंह बिहार जमशेपुर को प्रतनिधित्व कर रहे थे। ए एन सिंह ने कोर्ट का ऑर्डर दिखाया लेकिन ऑर्डर पर जज का हस्ताक्षर नहीं था ।इस पर शशांक मनोहर ने टिप्पणी करते हुए हाउस को बताया कि जब तक जज का हस्ताक्षर नहीं हो जाता तब तक ऑर्डर अमान्य है। बोर्ड अध्यक्ष ने बोर्ड के रुल २९ के तहत बिहार क्रिकेट संघ,पटना को मान्यता दी।फिर चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई और चुनाव में डालमिया जी जीत गए। अगले मीटिंग में डालमिया जी ने बिहार को मान्यता निरस्त कर दिया।

बिहार क्रिकेट के लिए दुखद समाचार था। यह शुद्ध रूप से बोर्ड का तुगलकी फरमान था।लेकिन इस से लड़ने के जगह लोग आपस में आरोपी और दोषी सिद्ध करने में लगे रहे। ऐसा लगने लगा कि घायल शेर घात का इंतज़ार कर रहा हो।अब निष्क्रिय ग्रुप काफी सक्रिय हो गया।दादा के खिलाफ एक अभियान चलाया। इसी बीच एक मीटिंग मंत्री जी के आवास पर हुई। यह पहले से ही अंदेशा था कि वे लोग हमलावर होंगे। यहां बहुत लोग मुक दर्शक बने रहने उचित समझते थे। इसमें कुछ लोग काफी चंचल थे दोनों तरफ अपनी उपस्थित बनाकर चल रहे थे।

विधायक जी ने मंत्री जी से आदेश मांगा कुछ बोलने के लिए और मंत्री जी ने इजाज़त दी। विधायक जी ने कहा कि मुथैया का समर्थन करने की बात सामूहिक निर्णय था। किसी एक व्यक्ति पर दोषारोपण सही नहीं है।
यह मान सकते हैं कि दादा और डालमिया जी के साथ जो बातचीत हुईं दादा ने सही तरीका नहीं अपनाया । दादा को कूटनीति का इस्तेमाल करना चाहिए था। लेकिन जो काम डालमिया जी ने बिहार क्रिकेट के साथ किया वह क्या उचित है।

हम सब को एक साथ मिलकर इस निर्णय का विरोध करना चाहिए। इसके समर्थन में अम्बेडकर जी, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर एवं कई अन्य सदस्य खड़े हो गए थे। मंत्री जी भी इस बात से सहमत थे। निर्णय हुआ कि इस पर कानूनी सलाह ली जाए। एक बार फिर दादा के विरोधियों का मंसूबा धरा का धरा रह गया। लेकिन वे लोग शांत होने वाले नहीं थे।

इधर दादा ग्रुप का एक कोर टीम बना जिसमें मंत्री जी, दादा, मुजफ़्फ़र पुर, समस्तीपुर, अम्बेडकर जी, टायकन्न और विधायक जी, जो आगे के रणनीति तय करेंगे और यह तय हुआ कि जल्द से जल्द क्रिकेट गतिविधि को शुरू किया जाए। यह सब चल ही रहा था कि एक ख़बर आई कि बोर्ड ने बिहार और झारखंड के लिए एक संयुक्त स्पेशल कमिटी बनाए है जो क्रिकेट गतिविधियों एवं प्रशासनिक कार्यों का निष्पादन करेगी। यहीं से बिहार क्रिकेट का संघर्ष शुरू होता है।

BCA इस निर्णय के खिलाफ कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया। अचानक ख़बर आई कि बिहार से भी दो लोगों को इस कमिटी में नाम है और वो नाम था एक कप्तान का दूसरा टायकन्न का। तुरंत दादा एवं विधायक जी (चूंकि कोर कमेटी के बाकी लोग पटना से
बाहर के थे) मंत्री जी के यहां गए और वहां से राजनेता के आवास पर गयें और उन्हें सारी बातें विस्तार से बताई गई। राजनेता ने बातचीत के दौरान बताया कि कुछ दिन पहले हमारे पास दोनों आया था और कहा की डालमिया जी से बात कर कह दीजिए कि इन दोनों को भेज रहे है आप से बात करने के लिए।

राजनेता ने अपने बोल चल में बोले कि यह तो हमलोंगों के राजनीत को भी मात दे दिया है। इस पूरे गतिविधि से वो नाराज़ थे और बोले कि केस दर्ज करो। दादा,विधायक जी एवं अन्य लोगों ने पटना सिविल कोर्ट में याचिका दायर की। बीसीए को तुरंत राहत की जरूरत थी लेकिन कोर्ट को कानूनी प्रक्रिया के कारण तत्काल कोई फैसला देना संभव नहीं था ।बोर्ड के वकील एक रणनीति के तहत तारीख पे तारीख ले रहे थे ताकि उनका क्रिकेट गतिविधियों में कोई रुकावट ना हो और सम्पन्न हो जाए । वोर्ड बिहार के कुछ पदाधिकारियों एवं कमिटी के सदस्यों के संपर्क में था जो केस को कोऑर्डिनेट कर रहे थे।

इस बात कि पुष्टि तब हुआ जब दादा, अम्बेडकर जी एवं विधायक जी एक वकील को ठीक करने गए तो पता चला कि वो बोर्ड का केस लड़ रहे है और वहीं पर बोर्ड का एक फाइल टेबुल पर रखा था और उस फ़ाइल पर कुछ कॉन्टेक्ट नंबर लिखे थे,एक कप्तान, दूसरा टायकन्न और तीसरा केरी पैकर। बीसीए कई लोगों से लड़ रहा था। एक बोर्ड और दूसरा अपने लोग जो भीतर ही भीतर घात कर रहे थे। संघर्ष और बीसीए एक दूसरे के पर्ययवाची बन गया था।यह सब चल ही रहा था कि 2002 में एबीसी नाम से एक नया एसोसिएशन का गठन हुआ।जिसे कीर्ति आजाद लीड कर रहे थे और इस कमिटी में सबा करीम,अमिकर दयाल जैसे सरीखे लोग शामिल थे।

ये लोग भी मान्यता के लिए आवेदन किया था।एक बार फिर एक आब्जर्वर(रत्नाकर शेट्टी) बिहार भेजे गए निरक्षण करने हेतु। अपने रिपोर्ट में बिहार में विवाद को दर्शाया गया और दो एसोसिएशन यहां कार्यरत है इसकी पुष्टि की। कोर्ट के अंदर में इसी तरह की दलील दी।अब बीसीए के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने जिलों और खिलाड़ियों को अपने खेमें में संभालना। एबीसी के लोगों ने भरपूर कोशिश किया कि जिलों और खिलाड़ियों को तोड़े लेकिन एक भी जिला और कुछ खिलाड़ी को छोड़कर (एक दुका ) उधर नहीं गए। इस मुहिम में बीसीए के एक ग्रुप भी सक्रिय थे लेकिन असफलता हासिल हुआ।

अब यह भी तय माना जा रहा था कि इस सब के पीछे डालमिया जी का हाथ है। डालमिया जी बिहार को विवादित कर अपने मक़सद में कामयाब रहे। इधर बीसीए के बहाली के लिए सभी लोग प्रतिबद्ध थे वैसे लोगों को छोड़ कर जो बीसीए में रहते हुए अप्रत्क्ष रूप से विरोधी अभियान में शामिल थे। अब बीसीए को कोर्ट के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। इस दौरान सिविल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बीसीए लड़ रहा था। लाखों रुपए खर्च हो रहे थे।इसके अलावा घरेलू क्रिकेट भी जारी रखना था।इस कार्य के संपादन में पैसों की सख्त जरूरत थी।कुछ लोग अपने समर्थ के अनुसार सहयोग कर रहे थे।दादा और विधायक जी को पटना में रहने के कारण इनके ऊपर ज्यादा जवाब देही था।

अम्बेडकर जी, मुज़फ़्फ़रपुर, और समस्तीपुर को पटना से बाहर होने के कारण इन दोनों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। लेकिन लड़ाई जारी था।इसी तरह लुका छिपी में कई वर्ष गुज़र गए। एबीसी ने भी खास राजनैतिक दल के खेल प्रकोष्ठ के लोगों को लेकर जिलों में क्रिकेट गतिविधि शुरु कर दिया था। लेकिन सभी चर्चित खिलाड़ी बिहार क्रिकेट संघ के साथ खड़े थे।कुछ ऐसे लोग भी थे जो दोनों तरफ अपना सम्बन्ध बनाकर रखना चाहते थे। कुछ वर्षों के बाद जो बीसीए के विक्षुब्ध ग्रुप थे जो एबीसी को अपरोक्ष रूप से सहयोग कर रहे थे। जब उन्हें एबीसी में अहमियत नहीं मिला तो वे लोग मायूस होने लगे और वैसे लोग अब अप्रासंगिक हो रहे थे। बीसीए ने अक्टूबर २००४ में वार्षिक आम सभा के लिए अधिसूचना जारी की और सभी जिला और सदस्य इस बैठक में भाग लेने पटना पहुंच गए थे।

एजीएम के पहले प्रबंधन समिति की भी एक बैठक होना था जिसमें एजीएम के एजेंडा को समिति के द्वारा पास होना आवश्यक था। लेकिन सचिव के द्वारा लेखा जोखा और रिपोर्ट पेश नहीं करने के कारण एजीएम को अगले तिथि तक स्थगित किया गया।मंत्री जी सभी सदस्यों एव जिलों के प्रतिनिधियों से मिलकर चले गए। विधायक जी भी मंत्री जी के साथ चले गए थे। करीबन एक घंटे के बाद विधायक जी फिर लौट कर आए वेन्यू पर। यहां पर लोग एक दूसरे को बधाई दे रहे थे।कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि लोग एक दूसरे को बधाई क्यों दे रहे है। एक पत्रकार ने विधायक जी से पूछा आप क्या बने।विधायक जी पूछा मतलब?तो पत्रकार ने विस्तार से जानकारी दी। एक नई कमिटी का गठन किया गया जिसमें दादा के जगह कप्तान सचिव बने और मंत्री जी को कार्यकारी अध्यक्ष से एक्सक्यूटिव प्रेसीडेंट और वरीय पुलिस अधिकारी ( saran के अध्यक्ष) को कार्यकारी अध्यक्ष पद पर नामित किया गया।

विधायक जी यह सुनकर आश्चर्यचकित हुआ।दादा से वहीं पर भेंट हुई और विधायक जी अपना सारा भरास सब निकाल लिया।
दादा विक्षुब्धओं के दबाव के कारण मजबुर और असहाय महसूस कर रहे थे। विधायक जी इसकी जानकारी मंत्री जी और आंबेडकरजी को दिया। मंत्री जी दरभंगा के रास्ते से वापस लौट आए। विधायक जी और दादा रात में उनके घर पर गए। मंत्री जी के द्वारा एक नोटिस जारी की गई और उस बैठक को निरस्त किया। उन लोगों की रणनीति फिर असफल हुई। लेकिन वे अपने चाल चल रहे थे। इसी वर्ष २००४ में अभिवाजित बिहार क्रिकेट संघ को पुनर्जीवित किया जा रहा था और वहां चुनाव की तैयारी हो रही थी और यह सब डालमिया जी के निर्देश पर हो रहे थे। लेकिन सबसे ज्यादा चोकाने वाली बात यह थी की चुनाव में कप्तान भी अपना उम्मीदवारी घोषित किए और चुनाव लड़ें।

जबकि बिहार क्रिकेट संघ, पटना इस चुनाव का विरोध कर रहे थे और इसी तरह वर्ष २००४ बीत गया। इधर बीसीए का भी चुनाव निर्धारित होना था क्योंकि बीसीए का कार्यकाल भी पूरा हो चुका था। बीसीए का वार्षिक आम सभा एवं चुनाव दरभंगा में अगस्त २००५ को करवाने का निर्णय लिया गया। इस चुनाव में दो महत्पूर्ण चीजें दिखा एक तो चुनाव निर्विरोध हुआ और दूसरा कप्तान इस चुनाव में शरीक नहीं हुए। समिति में आंशिक फेर बदल किया गया।इस में दादा के जगह मुजफ़्फ़र पुर के सचिव को सचिव बीसीए,और दादा को कोषाध्यक्ष के पद पर निर्वाचित किए गए।

इस चुनाव में अम्बेडकर जी और विधायक जी चुनाव नहीं लड़ें। इन दोनों को संयुक्त सचिव के लिए नामित करने का निर्णय लिया गया था। लेकिन वर्तमान सचिव अम्बेडकर जी को संयुक्त सचिव नहीं बना चाहते थे और वो सिर्फ विधायक जी को बनाने के लिए राज़ी थे और नॉमिनेटेड लेटर भी दिया और कहा कि राजनेता से अनुमोदन करवा लेने को कहा लेकिन विधायक जी ने साफ तौर पर बनने से इंकार कर दिया। इस प्रकार दोनों बिना किसी पद पर रहते हुए भी बीसीए के लिए लड़ते रहे।
” आगे की कथा जारी ” पार्ट 2 जल्द

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