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Patna: बिहारियैं से एक छोटा सा सवाल है जरा बतायें जब से के बीसीसीआई द्वारा बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) को बिहार मे क्रिकेट कराना के लिए अदेश हुआ था तब से अब तक में बिहार के क्रिकेट मे क्या बदला….??
छोड़िये दिमाग पर जोर न दें , मै बताता हुं..।
सिर्फ चहरा बदला है नाम बदला है बकी वही घोसखोरों की भीड़, वही पैसा पैरवी और रिचार्ज का खेल, वही चापलूसों की चापलूसी और वही पदपर आये पदाधिकारी अपने पुर्व के गुरुओं के नकसे पर चलते हुए क्रिकेट के विकास के लिए आये पैसों की बंदरबाँट करने मे एक दुसरे से लड़ाई…. तेल लेने गया बिहार, बिहारी क्रिकेट प्रशंसक और बिहार के क्रिकेट खिलाड़ी।
आज के बीसीए पदाधिकारीयों के पुर्वज पदाधिकारी 50 लाख के लिए लड़कर बिहार के होनहार खिलाड़ियों के भविष्य को खागये वहीं वर्तमान मे जो बीसीए के पदाधिकारी हैं वो 5 करोड़ के डकार बैठे हैं..।
ये बात मै नही कहरहा पुर्व मे 50 लाख का आरोप पुर्व के बीसीए कोषाध्यक्ष ने अपने सचिव पर लगाया था और वर्तमान मे भी बीसीए कोषाध्यक्ष, बीसीए अध्यक्ष ने निलंबित सचिव के उपर 5-6 करोड़ के गलत निकासी का लगाया है।
अब हाल समझने की जरुरत है आम आदमी, खेल प्रेमी, क्रिकेट खिलाड़ियों तथा सरकार को भी समझना जरूरी है की बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष और सचिव की लड़ाई मे भविष्य तो बिहार के क्रिकेटरों का होरहा , एक पदाधिकारी है जो खुद को भारत के सब से शक्तिशाली केंद्रीय मंत्री का करिबी बताकर डिंगे हाँकने मे लगा है जबकी मेरे हिसाब से वो ढ़ोलक की तरह है जो आवाज तो बहौत करता है परंतु अंदर से ढ़नढ़न /खाली रहता है वहीं दुसरी तरभ एक पदाधिकारी हैं जो अपनी जातिये समिकरण के कारण बिहार के क्रिकेट मे बहौत प्रभावशाली साबित करने और दुसरे पदाधिकारी को गलत साबित करने मे लगा है और खुद को बिहार सरकार के पुलिस विभाग का सबसे शक्तिशाली आदमी का करीबी बताते घुमता है..।
काश ये लड़ाई बिहार के क्रिकेट को सुधारने और बिहार के होनहार खिलाड़ियों के भविष्य को आगे लेजाने के लिए होती परंतु यहाँ तो सत्ता भोगने, जयादा से ज्यादा पैसा हड़पने और अपने गुटको बीसीए मे कब्जा दिलाने के लिए खींचतान हो रही और इसका नतिजा जो होगा जो उसको भुगतेंगे बिहार के क्रिकेटर कहीं फिर से बीसीसीआई बिहार की मान्यता पर अपना चाबुक न चलादे और बिहार के क्रिकेटरों को फिर से वनवास झेलना पड़ जाये।
मै अब दो काम करने जा रहा हुं एक तो ये की बीसीसीआई अध्यक्ष तथा सचिव से बिहार के क्रिकेट को बीसीसीआई ही चलाये इसकी माँग और दुसरा बीसीए के सभी वैसे पदाधिकारी जो मेरी नज़र मे दो कौड़ी के हैं , जिनको बिहार क्रिकेट तथा क्रिकेटरों से कोई मतलब नही वो तो बस पैसा कमाने आयें हैं उनपर एफआईआर साथ ही बिहार सरकार सब कुछ जानकर भी मुकदर्शक बनी बैठी है और कहीं न कहीं बिहार क्रिकेट के दलालों का साथ देरही , एक मुईनुल हक स्टेडियम, राजेंद्र नगर , पटना मे है उसको भी बीसीए को देकर छोड़ दिया है जहाँ बीसीए कुछ कराता न तो खुद करा रहा न ही बिहार क्रिकेट के खिलाड़ियों को खेलने देने के लिए खाली कर रहा।
बिहार सरकार कैसे एक सरकारी संपत्ति को किसी एक निजी संस्था को दे सकता है जो की सिर्फ बिहार क्रिकेट के विकास के लिए बीसीसीआई से मिले पैसे को बरबाद कर रहा बीसीए वालों के बाप का पैसा नही है बीसीसीआई बिहार के खिलाड़ियों के नाम पर पैसा भेजता है।
या तो बिहार सरकार मोईनुल हक स्टेडियम हर आम नागरिक को देने के लिए फिर से आदेश जारी करे या फिर मेरे एफआईआर का इंतेजार करे ।
अब बिहार के क्रिकेट की लड़ाई हम जैसों को लड़नी पड़ेगी और कहीं न कही मुझे लगता है की अब बिहार के खिलाड़ियों को भी अपनी लड़ाई एक जुट होकर खुद लड़नी पड़ेगी …. बिहार के होनहारों के भविष्य को बरबाद होने से बचाना है तो बीसीए के खिलाफ़ फिर से लड़ाई शुरु करनी पड़ेगी… क्योंकि दलाल रुपी नेता और दलाल रुपी गुणडा क्रिकेट नही चला सकते।