Home उत्तराखंड वसीम जाफ़र साहब को तो जाना ही था : प्रेम सिंह नेगी

वसीम जाफ़र साहब को तो जाना ही था : प्रेम सिंह नेगी

by Khelbihar.com

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पौड़ी(उत्तराखंड): बीते दिनों अपने कोच पद से इस्तीफ़ा देने वाले वसीम जाफ़र और क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड के सचिव के बीच विवाद को लेकर कई बाते किया जा रहा है। इस बीच खेल मीडिया पर अपनी बात रखते हुए क्रिकेट फेडेरशन ऑफ़ पौड़ी के सचिव प्रेम सिंह नेगी ने कहा कि” 3 साल पहले उत्तराखंड टीम को बीसीसीआई की मान्यता मिली,उसके बाद उत्तराखंड से ही महिम वर्मा के रूप में बीसीसीआई उपाध्यक्ष मिला । हालांकि बाद में उत्तराखंड क्रिकेट की बेहतरी के लिए महिम वर्मा ने बीसीसीआई उपाध्यक्ष का पद छोड़ कर क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के सचिव पद पर चुनाव जीतकर काम करना शुरू किया । उत्तराखंड क्रिकेट के लिए व क्रिकेट के हित के लिए महिम बर्मा जी ने बीसीसीआई उपाध्यक्ष का पद छोडा कर महिम जी द्वारा पहाड़ी क्षेत्र के जिलो मे क्रिकेट को बढाव दिया गया महिम वर्मा उत्तराखंड क्रिकेट का भला चाहते है हमे महिम जी पर पूरा विश्वास है वह क्रिकेट हित के लिए काम कर रहे है क्रिकेट फैडरैशन ऑफ पौडी आप के साथ है।

उन्होंने आगे कहा 2020-21 सीजन से पहले नई कोच की तलाश शुरु हुई ,कई नामो पर विचार किया गया , आखिरकार घरेलू क्रिकेट के दिग्गज “वसीम जाफ़र” के नाम पर मोहर लगी ।वसीम जाफ़र ने सीएयू के हैड कोच पद पर जोइनिंग के वक्त कहा कि उनको खुल्ली आज़ादी चाहिए , रिजल्ट की गारंटी उनकी । इसके बाद वसीम जाफ़र प्रो प्लेयर्स के तौर पर मुम्बई के युवा ओपनर जय बिश्टा , लेफ्ट आर्म स्पिनर इक़बाल अब्ददुला व 37 वर्षीय मीडियम पेसर समद फ़लाह को लेकर आये । जाफ़र अपने साथ आधा दर्जन स्टाफ़ भी लेकर आये ।सयैद मुश्ताक अली ट्रॉफी के लिये जाफ़र ने 1 महीने का कैम्प मांगा वो भी जाफ़र को दिया गया । बॉयो बबल प्रक्रिया के तहत अभिमन्यु क्रिकेट एकेडमी में लगे इस कैम्प के लिए सीएयू ने 32 खिलाड़ियों और स्पोर्टिंग स्टाफ के लिए लगभग 1 करोड़ रुपया खर्च किया ।

सयैद मुश्ताक अली ट्रॉफी के चयन प्रक्रिया में जाफ़र को फ्री हैंड दिया गया ।सिलेक्टरो ने अपना काम करने के बाद कोई हस्तक्षेप नही किया । टीम बनी तो कई सवाल खड़े हुए , 22 सदस्य टीम से पिछली साल के बेस्ट बॉलर और अनुभवी सन्नी राणा, आक्रमक बल्लेबाज विजय जेठी , मीडियम पेसर प्रदीप चमोली समेत कई काबिल खिलाडियो को जगह नही मिली । लेकिन सबसे बड़ा ब्लंडर हुआ प्लेइंग 11 के चयन में ।जाफ़र जैसे बड़े नाम और कैम्प पर करोड़ो खर्च करने के बाद सभी उम्मीद लगाए बैठे थे कि जाफ़र साहब पूरी टीम की नस नस से बाकिफ हो गए है ।लेकिन टॉस जीतकर बैटिंग करनी है या बॉलिंग , प्लेइंग 11 क्या होगी , बेटिंग आर्डर क्या होगा , बोलिंग कॉम्बिनेशन क्या होगा , स्लॉग ओवर में कौन गेंद फेंकेगा , बढ़ते रनरेट को कौन कम करेगा ।मतलब पहले मैच से लेकर पांचवे मैच तक कहीं भी कोई भी रणनीति नजर नही आई ।

समद फ़लाह जोकि व्हाइट बॉल का बॉलर है ही नही उसको टीम में लगातार रखा गया , उसने 4 मैच में 14 ओवर ही डाले और उसमें 116 रन देकर सिर्फ 2 विकेट लिए ।
कप्तान इकबाल अब्ददुला ने भी 5 मैचों में 17 ओवर डाले और 128 रन देकर 2 विकेट लिए । साथ ही इकबाल ने कई मैचों में विशुद्ध ओपनर व हार्ड हीटर कुणाल चंदेला से आगे बल्लेबाजी की , जिसकी वजह से टीम को हार का सामना करना पड़ा । अब्दुल्ला ने 5 मैच में 36 बॉल पर 30 रन बनाए । कहते है जाफ़र ने ज़िद पकड़ी हुई थी कि कुणाल को 6-7 नम्बर पर ही खिलाएंगे । खैर सयैद मुश्ताक अली ट्रॉफी खत्म हुई और जाफ़र साहब का “नाम बड़े और दर्शन छोटे” वाला प्रोग्राम भी खत्म हुआ । सीएयू मैनेजमेंट ने हिसाब किताब मांगा कि क्यों टीम अच्छा प्रदर्शन नहीं कर कर पाई , क्यों आप 1 महीने के कैम्प में भी टीम नही समझ पाए । लगातार फ्लॉप हो रहे खिलाडियो को क्यों लगतार मौके दिए गए ।

बस यहीं से कोच साहब का ईगो हर्ट हो गया । इन्होंने विजय हजारे के लिए भी वही मनमानी चलाने की सोची । चीफ सिलेक्टर रिजवान शमशाद के दिये नामो पर भी विचार नही किया गया । कहा जा रहा है कि सीएयू मैनेजमेंट ने टीम कप्तान चेंज करने की बात कही तो जाफ़र उफ़न गए और लगातार फोन करने के बाद भी कॉल नही उठाई । दरअसल बड़े खिलाड़ी के टैग तले दबा नया नावेला कोच को ये गंवारा नही था कि किसी की सलाह सुनी जाए या उनकी हार का रिव्यू किया जाए । खैर ये पहला वाकया नही है , जब बड़े खिलाड़ी कोच की भूमिका में विफल हुए हो । क्योंकि इस तरह के केस में ईगो प्रॉब्लम हावी हो जाती है ।क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड इन को उत्तराखंड की क्रिकेट हित के लिए लाये थे उन्होने उत्तराखंड क्रिकेट मे ध्यान नही दिया आज कुछ तथकतिथ लोग महिम वर्मा जी पर उंगलियां उठा रहे है जो सरासर गलत है। क्रिकेट फैडरैशन ऑफ पौड़ी महिम जी के साथ है।

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